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फिल्म समीक्षा: दिल को छूती और अंदर तक हिलाती है गुलमोहर

khaskhabar.com : शुक्रवार, 03 मार्च 2023 2:10 PM (IST)
फिल्म समीक्षा: दिल को छूती और अंदर तक हिलाती है गुलमोहर
—राजेश कुमार भगताणी

सितारे : मनोज बाजपेयी, शर्मिला टैगोर, सिमरन, अमोल पालेकर, सूरज शर्मा, कावेरी सेठ, उत्सव झा, चंदन रॉय, जतिन गोस्वामी, गंधर्व दीवान और अन्य।
निर्देशक: राहुल चित्तेला

कहाँ देखें : डिज्नी + हॉट स्टार


देर रात को अकेले में बैठकर शर्मिला टैगोर और मनोज बाजपेयी अभिनीत फिल्म गुलमोहर देखने का मौका मिला। मुझे यह कहते हुए कोई शर्म या हिचक महसूस नहीं हो रही है कि गुलमोहर देखते वक्त मैं अपने आंसू रोक नहीं पाया। कुछ ऐसे दृश्य जिन्होंने नेत्रों की कोरों को गीला करने में सफलता पाई। एक ऐसी पारिवारिक फिल्म जिसे हर दर्शक को जरूर देखना चाहिए। कथा-पटकथा के साथ-साथ मनोज बाजपेयी और शर्मिला टैगोर की अदाकारी इस फिल्म का सबसे मजबूत पक्ष है। हालांकि फिल्म में कुछ कमियाँ हैं, लेकिन आप उन्हें देखते वक्त दरकिनार कर देते हैं। सिद्धार्थ खोसला का संगीत फिल्म में चार चाँद लगाता है।

गुलमोहर एक ऐसे परिवार की कहानी है जो पिछले 34 साल से दिल्ली मेंं एक ही छत के नीचे साथ रहता आ रहा है, लेकिन अब वह गुडग़ाँव से गुरुग्राम में तब्दील हो चुके दूसरे शहर में शिफ्ट हो रहा है। बिक चुके पुश्तैनी घर में एक माँ अपने बच्चों से होली का त्योहार आखिरी बार एक साथ मनाने का अनुरोध करती है। घर के सामान की पैकिंग और बाहर जाने की जद्दोजहद के बीच गुजरते अंतिम चार दिन के घटनाक्रम में परिवार के कुछ ऐसे रहस्य उजागर होते हैं जो गुलमोहर को हिला कर रख देते हैं।


गुलमोहर एक ऐसे परिवार की कहानी है जो आपसी रिश्तों के मध्य आई कुछ दरारों और समस्याओं के साथ एक छत के नीचे रहकर एक-दूसरे से जुड़े हुए थे, जिन्हें वे एक साथ जीत लेते हैं। लेकिन क्या परिवार हमेशा खून से बंधा होता है? या केवल एक ही वंश में पैदा होने की तुलना में अवधारणा के लिए और भी कुछ है? गुलमोहर को देखते वक्त शकुन बत्रा की कपूर एंड संस का ध्यान आता है, इसके बावजूद निर्देशक ने अपनी पकड़ से फिल्म को सफल बनाया है।

गुलमोहर एक ऐसे बंगले के लिए एक रूपक है जो उसमें रहने वाले सदस्यों की तरह ही शाखाबद्ध हो गया है। घर में सीढिय़ों का होना सफलता का पैमाना है, पिता ने अपने युवा दिनों में अपने बेटे को बताया जो अब परिवार का मुखिया है। घर में 34 साल हो गए हैं और अब वे बदलाव का फैसला करते हैं और बदलाव को गले लगाते हैं। अर्पिता मुखर्जी के साथ राहुल द्वारा लिखित, गुलमोहर किसी भी चीज से अधिक व्यक्तिगत है। यह लगभग हर भारतीय परिवार का पसंदीदा अनुभव है जो कभी एक साथ बरकरार था लेकिन अब परमाणु घरों में विभाजित हो गया है। एक संयुक्त संरचना में हर आवाज का प्रतिनिधित्व है, एक जो शक्ति रखती है, एक जो चुपचाप साक्षी है, एक जो मुखर है, और एक जो उत्पीडि़त है।

फिल्म में कुछ रोचक मोड़ हैं, जिनके सपोर्ट के लिए पटकथा में कई दृश्य लिखे गए हैं। यह सभी दृश्य भावनात्मक ज्वार का उफान लाने में सफल हैं। इन्हीं दृश्यों में परिवार के सदस्यों को उनकी औकात याद दिलायी जाती है। साथ ही रूढि़वादी सोच पर कटाक्ष है जो आधुनिक भारत के परिवारों में अभी तक मौजूद है। जहां गुलमोहर नाजुक और गतिशील है, वहीं दूसरी ओर यह कुछ कथानकों को अचानक से समाप्त कर देता है। उदाहरण के तौर पर एक चरित्र है जो समलैंगिक है, जिस तरह से इसे समाप्त किया गया है वह निर्देशक की जल्दबाजी को दर्शाता है।

शर्मिला टैगोर एक दशक से अधिक समय के बाद स्क्रीन पर लौटी हैं और उन्हें फिर से अपना राजसी जादू बिखेरते हुए देखना बहुत आनंद की बात है। अभी भी बहुत कुछ है जिसमें वह दृश्यों का सबसे जटिल प्रदर्शन करती है और आप उस अनुभव को देख सकते हैं जिसके साथ वह चलती है।

वहीं बात करें मनोज बाजपेयी की तो कहेंगे वो कभी कमतर हो नहीं सकते। उन्होंने अपने करियर की सबसे जटिलतम भूमिका को बड़ी शिद्दत के साथ परदे पर उतारा है। वह अपने पूरे अस्तित्व को एक पल में गिरते हुए देख चिंता से जूझ रहे व्यक्ति हैं। जिस तरह से वह इस चरित्र को संभालते हैं वह कला है जो केवल उनकी क्षमता के अभिनेताओं के पास है।

सिमरन बाजपेयी की पत्नी की भूमिका निभाती हैं और शानदार हैं। उनका किरदार पुराने मूल्यों और शहरीकरण को संजोए रखने के बिल्कुल केंद्र में लिखा गया है। आप उसमें दोनों का मिश्रण देखते हैं। जबकि वह इस पूरे परिवार की सेवा में है, वह अपने बड़बड़ाहट में विद्रोह भी करती है। उन्होंने अपने सूक्ष्म चेहरे के जरिये जो भावाभिव्यक्ति दी है वह बेमिसाल है। जतिन गोस्वामी के लिए विशेष उल्लेख, जो अपने आसपास की खामोशियों को बयां करते हैं।

राहुल चित्तेला को बेहतरीन सितारों का साथ मिला है, जिन्होंने उनकी पटकथा को परदे पर उकेरने में अपनी कला का बेहतरीन इस्तेमाल किया है। एक फिल्म निर्देशक के तौर पर वह अपनी कहानी के प्रति सच्चे हैं और कभी भी कम या ज्यादा कुछ भी बताने के लिए इससे विचलित नहीं होते हैं।

अन्य पक्षों में संगीतकार सिद्धार्थ खोसला का संगीत अच्छा है। उन्होंने पूरी फिल्म में इतना बेहतरीन संगीत दिया है जो गुलमोहर को नयनाभिराव बनाता है।

कहा जा सकता है कि गुलमोहर एक व्यक्तिगत फिल्म है जो परिवारों की बात करती है, जो परिजनों के अंर्तद्वंद्व को सामने लाती है। हो सकता है आपको इसे देखते हुए अपनी कुछ निजी जिन्दगी की झलक नजर आए, इसे एक तरफ रख दें और फिर इसे देखें। यह आपके दिलों को छुएगी और अन्दर तक हिलायेगी।

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