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भोजन को पेट तक पहुंचाने वाला फूड पाइप है बेहद खास, जानें इससे जुड़े अनसुने तथ्य

इस प्रक्रिया को नियंत्रित करने के लिए अन्ननलिका के दोनों सिरों पर स्पिंक्टर नामक द्वार होते हैं। ऊपरी स्पिंक्टर भोजन को नीचे जाने देता है, जबकि निचला स्पिंक्टर (एलईएस) पेट के अम्ल को ऊपर आने से रोकता है। जब लोअर एसोफिजिअल स्फिन्कटर कमजोर हो जाता है तो एसिड रिफ्लक्स जैसी समस्या होती है, जिससे गले में जलन, आवाज बैठना और खांसी तक हो सकती है। यही कारण है कि अन्ननलिका आवाज और श्वसन तंत्र से भी जुड़ी हुई है।
अन्ननलिका का नियंत्रण मुख्य रूप से वेगस तंत्रिका और स्वायत्त तंत्रिका तंत्र करते हैं। यही वजह है कि भोजन निगलने के बाद पूरी प्रक्रिया अपने आप चलती है और हमें इसका एहसास भी नहीं होता। अन्ननलिका केवल भोजन को पेट तक पहुंचाने में ही नहीं, बल्कि स्वाद और तृप्ति की अनुभूति में भी योगदान करती है। जब भोजन पेट की ओर जाता है तो इसकी नसें दिमाग को संदेश भेजती हैं, जिससे हमें संतोष और स्वाद का अनुभव होता है।
हालांकि, अन्ननलिका से जुड़ी कई बीमारियां भी आम हैं। इनमें एसिड रिफ्लक्स, अन्ननलिका का संक्रमण, निगलने में कठिनाई, अल्सर और कैंसर शामिल हैं। दुनिया में पाए जाने वाले आम कैंसरों में से एक एसोफैजियल कैंसर भी है, जिसका प्रमुख कारण तंबाकू, शराब और बहुत गरम पेय का सेवन है। वहीं, अगर भोजन अन्ननलिका में फंस जाए और निचला स्पिंक्टर न खुले, तो यह अचलासिया कार्डिया नामक बीमारी का रूप ले सकता है।
आयुर्वेद और घरेलू उपाय अन्ननलिका को स्वस्थ रखने में मददगार हैं। मुलेठी का चूर्ण गले की खराश और जलन में राहत देता है, जबकि अजवाइन और सौंफ पाचन को बेहतर बनाते हैं। एलोवेरा जूस अन्ननलिका की सूजन कम करता है और गिलोय-तुलसी संक्रमण से बचाता है। दूध और केला हल्की जलन में तुरंत आराम पहुंचाते हैं। जीवनशैली में सुधार जैसे भोजन के तुरंत बाद न सोना, तंग कपड़े न पहनना, धूम्रपान और शराब से दूरी रखना तथा योग-प्राणायाम को अपनाना भी अन्ननलिका को स्वस्थ रखने में बेहद कारगर है।
--आईएएनएस
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