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लोहड़ी : मकर संक्रांति से पूर्व मनाया जाता है पंजाबियों का प्रसिद्ध त्यौंहार
लोहड़ी से संबद्ध परंपराओं एवं रीति-रिवाजों से ज्ञात होता है कि
प्रागैतिहासिक गाथाएँ भी इससे जुड़ गई हैं। दक्ष प्रजापति की पुत्री सती के
योगाग्नि-दहन की याद में ही यह अग्नि जलाई जाती है। इस अवसर पर विवाहिता
पुत्रियों को माँ के घर से त्योहार (वस्त्र, मिठाई, रेवड़ी, फलादि) भेजा
जाता है। यज्ञ के समय अपने जामाता शिव का भाग न निकालने का दक्ष प्रजापति
का प्रायश्चित्त ही इसमें दिखाई पड़ता है। उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में
खिचड़वार और दक्षिण भारत के पोंगल पर भी-जो लोहड़ी के समीप ही मनाए जाते
हैं-बेटियों को भेंट जाती है। लोहड़ी से 20-25 दिन पहले ही बालक एवं
बालिकाएँ लोहड़ी के लोकगीत गाकर लकड़ी और उपले इक_े करते हैं। संचित
सामग्री से चौराहे या मुहल्ले के किसी खुले स्थान पर आग जलाई जाती है।
मुहल्ले या गाँव भर के लोग अग्नि के चारों ओर आसन जमा लेते हैं। घर और
व्यवसाय के कामकाज से निपटकर प्रत्येक परिवार अग्नि की परिक्रमा करता है।
रेवड़ी (और कहीं कहीं मक्की के भुने दाने) अग्नि की भेंट किए जाते हैं तथा
ये ही चीजें प्रसाद के रूप में सभी उपस्थित लोगों को बाँटी जाती हैं। घर
लौटते समय लोहड़ी में से दो चार दहकते कोयले, प्रसाद के रूप में, घर पर
लाने की प्रथा भी है।
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