Advertisement
कहीं आप भी तो अपने बच्चों के सिर पर हेलीकॉप्टर की तरह नहीं मंडरा रहे?
सबसे पहले हम आपको बता दें कि आखिर हेलीकॉप्टर पेरेंटिंग होती क्या है? बच्चे के हर एक काम या उसके फैसले में दखलंदाजी करना या उसे सलाह देना ही हेलीकॉप्टर पेरेंटिंग में आता है। हर एक माता-पिता अपने बच्चों के पालन-पोषण में कभी कोई कमी नहीं छोड़ते, वह बच्चों को अपने फैसले लेने के लिए फ्री छोड़ देते हैं, चाहे वह पढ़ाई का फैसला हो या कोई निजी फैसला। पेरेंट्स उन्हें मौका देते हैं कि वह अपने फैसले खुद से लें।
मगर कई पेरेंट्स इस मामले में एक अलग ही तरह का रुख अख्तियार करते हैं। वह छोटी-छोटी चीजों के लिए एक हेलिकॉप्टर की तरह बच्चों के सिर पर मंडराते रहते हैं।
पिछले कुछ वर्षों में हेलिकॉप्टर पेरेंटिंग का चलन बहुत बढ़ गया है। सबसे पहले डॉ. हेम गिनोट ने 1969 में अपनी किताब 'बीटवीन पेरेंट एंड टीएनजर' में 'हेलीकॉप्टर पेरेंटिंग' का जिक्र किया था।
इसी हेलीकॉप्टर पेरेंटिंग को समझने के लिए आईएएनएस ने शिक्षाविद, पैरेंट्स लाइफ कोच और उत्तर प्रदेश शिक्षा परिषद की अध्यक्ष अंजलि चोपड़ा से बात की।
उन्होंने कहा, ''हेलीकॉप्टर पेरेंट्स वह होते हैं जो अपने बच्चों के हर छोटे-बड़े फैसले में उनका साथ देते हैं। वह चाहते हैं कि उनके बच्चे को किसी भी तरह की कोई परेशानी न आए। मगर कभी-कभी यह बच्चों के लिए हानिकारक भी साबित हो सकता है। इससे बच्चे अपने खुद के फैसले लेने में समर्थ नहीं हो पाते, फिर किसी भी परेशानी में उन्हें अपने माता-पिता की ही याद आती है।''
अंजलि चोपड़ा ने कहा कि अगर आप भी हेलीकॉप्टर पेरेंटिंग कर रहे हैं तो आज से ही इसमें बदलाव लाने की जरूरत है।
उन्होंने बताया, ''सबसे पहले तो अपने बच्चों को अपने छोटे-छोटे फैसले खुद लेने दें, यह फैसले शुरू में थोड़े गलत हो सकते हैं मगर समय के साथ बच्चों को काफी कुछ सीखने को मिलेगा। अगर बच्चों को कुछ काम करने में परेशानी हो रही है तो उन्हें केवल गाइडेंस दें।''
एक बात पर उन्होंने जोर देते हुए कहा, ''कई बार हमें यह देखने को मिलता है कि बच्चों के स्कूल की ओर से दिए गए प्रोजेक्ट पेरेंट्स खुद ही पूरे कर रहे हैं, जो बिल्कुल गलत बात है। उन्हें यह सब खुद से करने दें। ऐसे में बच्चों को पूरी तरह से दिशा-निर्देश दें, ताकि वह इसे खुद से कर पाएं।''
अंजलि चोपड़ा ने कहा कि हेलीकॉप्टर पेरेंटिंग करने से अच्छा है कि आप अपने बच्चे की बातें सुने, उन्हें समझें, अपने फैसले खुद से लेने दें, ताकि वह समाज के सामने अपने विचार रखने में समर्थ रहे।
''हमारे बच्चे अपनी जिंदगी को तभी अच्छे से समझ पाएंगे जब हम उन्हें कुछ करने का मौका देंगे। अपनी बातों को उन पर ना थोपें, इसके साथ ही यह उम्मीद बिल्कुल न करें कि आप जो कह रहे हैं वह उसे वैसे ही समझेंगे।''
--आईएएनएस
ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
Advertisement
यह भी प�?े
Advertisement
लाइफस्टाइल
Advertisement