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फिल्म समीक्षा : पठान—तेज रफ्तार, दमदार एक्शन सीट नहीं छोड़ते दर्शक

—राजेश कुमार भगताणी
निर्माता : आदित्य चोपड़ा
निर्देशक : सिद्धार्थ आनन्द
सितारे : शाहरुख खान, दीपिका पादुकोण, जॉन अब्राहम, डिम्पल कपाडिया, आशुतोष राणा और सलमान खान (विशेष भूमिका 8 मिनट)
बहुप्रचारित और विवादित पठान ने पहले दिन बॉक्स ऑफिस पर अच्छी शुरूआत की है। यांत्रिक प्रचार के बलबूते पर दर्शकों को आकर्षित करने का प्रयास किया गया है। लेकिन फिल्म देखने के बाद यह एक सामान्य फिल्म नजर आई। फिल्म की कहानी है एक एक्स भारतीय एजेंट जिम की, जिसके परिवार को उसी के सामने इसलिए मार दिया गया क्योंकि भारत सरकार ने उन्हें छुड़ाने के लिए आतंकवादियों द्वारा मांगा गया 10 करोड़ का मुआवजा नहीं दिया। जिम को मरा मानकर भारत सरकार ने उसे वीरता पुरस्कार से नवाजा, लेकिन जिम बच गया। जिम ने अपने परिवार का बदला लेने के लिए पाकिस्तान से हाथ मिलाया और भारत को बर्बाद करने के लिए एक बॉयोलॉजिकल वैपन बनाया। जिम को रोकने के लिए भारत सरकार की ओर से पठान के नेतृत्व में एक टीम तैयार की गई। इस मिशन के दौरान पठान की मुलाकात डॉक्टर रूबीना से होती है जो पठान के लिए मिशन में मुश्किलें पैदा करती है लेकिन अन्त में साथ आ जाती है। इसके बाद पठान कैसे अपने से ताकतवर जिम को रोकने का प्रयास करता है यही फिल्म की कहानी है।
निर्देशक सिद्धार्थ आनन्द ने पूरी फिल्म को एक्शन के दम पर प्रभावी बनाने का कार्य किया है। एक्शन अच्छा है लेकिन पटकथा के जरिये दृश्यों की जो कल्पना की गई है वह स्पाई यूनिवर्स की पिछली फिल्मों, एक था टाइगर, टाइगर जिंदा है, वॉर और कुछेक दृश्य जॉन-दीपिका की रेस-2 से मिलते हैं। उदाहरण के तौर पर शाहरुख खान द्वारा तैयार की गई टीम, ठीक उसी तरह से है जिस तरह टाइगर जिंदा है में सलमान खान करते हैं। कहानी में कुछ ट्विस्ट डाले गए हैं जो रेस-2 की नकल हैं। यहाँ पर रेस-2 की भाँति दीपिका को पहले नकारात्मक भूमिका में पेश किया गया है, जो जिम के साथ मिलकर पठान के मिशन में मुश्किलें पैदा करती है।
अभिनय के मोर्चे पर शाहरुख खान का काम अच्छा है। बतौर एक्शन हीरो उनकी यह पहली फिल्म है, उनके भूमिका को प्रशंसनीय बनाने में उनके लुक ने बहुत सपोर्ट किया है। दीपिका पादुकोण ग्लैमरस हैं लेकिन वे कहीं से भी पाकिस्तानी नजर नहीं आती हैं। उनके संवादों में पाकिस्तानी अंदाज की कमी खलती है। एक था टाइगर और टाइगर जिंदा है में कैटरीना कैफ पाक नागरिक के तौर पर इनसे कहीं ज्यादा प्रभावी रही थीं। डिम्पल कपाडिया और आशुतोष राणा का अभिनय सराहनीय है।
अब बात करें फिल्म के खलनायक जॉन अब्राहम की। जिम के रूप में फिल्म का सबसे सशक्त और दमदार किरदार इन्हीं के पास है। जॉन ने इस किरदार को बहुत ही बेहतरीन तरीके से अंजाम दिया है। कहा जा सकता है कि वे शाहरुख खान के ऊपर जबरदस्त भारी पड़े हैं। फिर चाहे वो एक्शन का मामला हो या संवाद अदायगी या उनके हिस्से में आए संवादों को सभी जगह उन्होंने शाहरुख खान को मात दी है। सलमान खान को टाइगर के रूप में शाहरुख खान के साथ फाइट करते हुए दिखाया गया है। चलती ट्रेन में फिल्माया गया यह दृश्य लगभग 8 मिनट लम्बा है। यहाँ भी एक कमी अखरती है वह है सलमान खान का ट्रेन की छत पर पहुँचा, वे पहाड़ों के मध्य कैसे चलती ट्रेन की छत पर पहुँचे समझ से बाहर है।
फिल्म का वीएफएक्स और कैमरा वर्क शानदार है। बैकग्राउण्ड म्यूजिक पूरी फिल्म में अलग है। पठान के एंथम को भी कहीं-कहीं प्रयोग में लिया गया है। हर दृश्य के साथ नया म्यूजिक ताजगी का अहसास देता है।
किरदारों की पिछली कहानी को पूरी तरह से नहीं दिखाया गया है। दीपिका के बचपन को दो दृश्यों में समेट दिया गया है। पठान के किरदार को लम्बा बनाया गया है लेकिन उसके किरदार की गहराई में नहीं जा पाए हैं। यहाँ पर सिद्धार्थ आनन्द मात खा गए हैं। वे पठान की एंट्री दृश्य को ताली बजाऊ नहीं बना पाए। पठान की एंट्री मार खाते हुए होती है, जिससे दर्शक तालियाँ नहीं बजा पाता है। एक और बात की कमी खलती है वह है फिल्म की कहानी मिशन से शुरू होकर मिशन पर खत्म हो जाती है। फिल्म में लोकप्रिय गीत-संगीत की कमी खलती है। सिर्फ दो गीत हैं जिनमें से झूमे जो पठान टाइगर जिंदा है के गीत स्वैग से करेंगे सबका स्वागत की भाँति फिल्म के अंत में है। बेशरम रंग गीत से दो दृश्यों को हटाया गया है।
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि यदि आप शाहरुख खान और जॉन अब्राहम के हार्ड कोर प्रशंसक हैं तो आप इस फिल्म को आसानी देख सकते हैं।
निर्माता : आदित्य चोपड़ा
निर्देशक : सिद्धार्थ आनन्द
सितारे : शाहरुख खान, दीपिका पादुकोण, जॉन अब्राहम, डिम्पल कपाडिया, आशुतोष राणा और सलमान खान (विशेष भूमिका 8 मिनट)
बहुप्रचारित और विवादित पठान ने पहले दिन बॉक्स ऑफिस पर अच्छी शुरूआत की है। यांत्रिक प्रचार के बलबूते पर दर्शकों को आकर्षित करने का प्रयास किया गया है। लेकिन फिल्म देखने के बाद यह एक सामान्य फिल्म नजर आई। फिल्म की कहानी है एक एक्स भारतीय एजेंट जिम की, जिसके परिवार को उसी के सामने इसलिए मार दिया गया क्योंकि भारत सरकार ने उन्हें छुड़ाने के लिए आतंकवादियों द्वारा मांगा गया 10 करोड़ का मुआवजा नहीं दिया। जिम को मरा मानकर भारत सरकार ने उसे वीरता पुरस्कार से नवाजा, लेकिन जिम बच गया। जिम ने अपने परिवार का बदला लेने के लिए पाकिस्तान से हाथ मिलाया और भारत को बर्बाद करने के लिए एक बॉयोलॉजिकल वैपन बनाया। जिम को रोकने के लिए भारत सरकार की ओर से पठान के नेतृत्व में एक टीम तैयार की गई। इस मिशन के दौरान पठान की मुलाकात डॉक्टर रूबीना से होती है जो पठान के लिए मिशन में मुश्किलें पैदा करती है लेकिन अन्त में साथ आ जाती है। इसके बाद पठान कैसे अपने से ताकतवर जिम को रोकने का प्रयास करता है यही फिल्म की कहानी है।
निर्देशक सिद्धार्थ आनन्द ने पूरी फिल्म को एक्शन के दम पर प्रभावी बनाने का कार्य किया है। एक्शन अच्छा है लेकिन पटकथा के जरिये दृश्यों की जो कल्पना की गई है वह स्पाई यूनिवर्स की पिछली फिल्मों, एक था टाइगर, टाइगर जिंदा है, वॉर और कुछेक दृश्य जॉन-दीपिका की रेस-2 से मिलते हैं। उदाहरण के तौर पर शाहरुख खान द्वारा तैयार की गई टीम, ठीक उसी तरह से है जिस तरह टाइगर जिंदा है में सलमान खान करते हैं। कहानी में कुछ ट्विस्ट डाले गए हैं जो रेस-2 की नकल हैं। यहाँ पर रेस-2 की भाँति दीपिका को पहले नकारात्मक भूमिका में पेश किया गया है, जो जिम के साथ मिलकर पठान के मिशन में मुश्किलें पैदा करती है।
अभिनय के मोर्चे पर शाहरुख खान का काम अच्छा है। बतौर एक्शन हीरो उनकी यह पहली फिल्म है, उनके भूमिका को प्रशंसनीय बनाने में उनके लुक ने बहुत सपोर्ट किया है। दीपिका पादुकोण ग्लैमरस हैं लेकिन वे कहीं से भी पाकिस्तानी नजर नहीं आती हैं। उनके संवादों में पाकिस्तानी अंदाज की कमी खलती है। एक था टाइगर और टाइगर जिंदा है में कैटरीना कैफ पाक नागरिक के तौर पर इनसे कहीं ज्यादा प्रभावी रही थीं। डिम्पल कपाडिया और आशुतोष राणा का अभिनय सराहनीय है।
अब बात करें फिल्म के खलनायक जॉन अब्राहम की। जिम के रूप में फिल्म का सबसे सशक्त और दमदार किरदार इन्हीं के पास है। जॉन ने इस किरदार को बहुत ही बेहतरीन तरीके से अंजाम दिया है। कहा जा सकता है कि वे शाहरुख खान के ऊपर जबरदस्त भारी पड़े हैं। फिर चाहे वो एक्शन का मामला हो या संवाद अदायगी या उनके हिस्से में आए संवादों को सभी जगह उन्होंने शाहरुख खान को मात दी है। सलमान खान को टाइगर के रूप में शाहरुख खान के साथ फाइट करते हुए दिखाया गया है। चलती ट्रेन में फिल्माया गया यह दृश्य लगभग 8 मिनट लम्बा है। यहाँ भी एक कमी अखरती है वह है सलमान खान का ट्रेन की छत पर पहुँचा, वे पहाड़ों के मध्य कैसे चलती ट्रेन की छत पर पहुँचे समझ से बाहर है।
फिल्म का वीएफएक्स और कैमरा वर्क शानदार है। बैकग्राउण्ड म्यूजिक पूरी फिल्म में अलग है। पठान के एंथम को भी कहीं-कहीं प्रयोग में लिया गया है। हर दृश्य के साथ नया म्यूजिक ताजगी का अहसास देता है।
किरदारों की पिछली कहानी को पूरी तरह से नहीं दिखाया गया है। दीपिका के बचपन को दो दृश्यों में समेट दिया गया है। पठान के किरदार को लम्बा बनाया गया है लेकिन उसके किरदार की गहराई में नहीं जा पाए हैं। यहाँ पर सिद्धार्थ आनन्द मात खा गए हैं। वे पठान की एंट्री दृश्य को ताली बजाऊ नहीं बना पाए। पठान की एंट्री मार खाते हुए होती है, जिससे दर्शक तालियाँ नहीं बजा पाता है। एक और बात की कमी खलती है वह है फिल्म की कहानी मिशन से शुरू होकर मिशन पर खत्म हो जाती है। फिल्म में लोकप्रिय गीत-संगीत की कमी खलती है। सिर्फ दो गीत हैं जिनमें से झूमे जो पठान टाइगर जिंदा है के गीत स्वैग से करेंगे सबका स्वागत की भाँति फिल्म के अंत में है। बेशरम रंग गीत से दो दृश्यों को हटाया गया है।
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि यदि आप शाहरुख खान और जॉन अब्राहम के हार्ड कोर प्रशंसक हैं तो आप इस फिल्म को आसानी देख सकते हैं।
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