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कैसे विनोद खन्ना ने विलेन की छवि को तोड़कर हिंदी सिनेमा के सुपरस्टार का मुकाम किया हासिल

धीरे-धीरे विनोद खन्ना को फिल्मों में हीरो के रोल मिलने लगे। साल 1971 में आई फिल्म 'मेरे अपने' में उन्हें पहली बार मुख्य भूमिका में देखा गया, जिससे उनकी लोकप्रियता में जबरदस्त इजाफा हुआ। यह फिल्म दर्शकों के बीच इतनी पसंद की गई कि विनोद खन्ना ने अपना नाम एक हीरो के तौर पर पक्का कर लिया। इसके बाद उनकी कई हिट फिल्में आईं, जैसे 'मेरा गांव मेरा देश', 'अमर अकबर एंथोनी', 'कुर्बानी', और 'दयावान'। इन फिल्मों ने साबित कर दिया कि वह सिर्फ विलेन ही नहीं, बल्कि बेहतरीन हीरो भी हैं।
विनोद खन्ना की खास बात यह थी कि उन्होंने कभी खुद को स्टारडम में फंसने नहीं दिया। वे अपनी मेहनत और सादगी से हमेशा सबका दिल जीतते रहे। उन्होंने अमिताभ बच्चन, राजेश खन्ना और सुनील दत्त जैसे दिग्गजों के साथ काम किया, लेकिन अपनी अलग पहचान बनाई। 'अमर अकबर एंथोनी' और 'मुकद्दर का सिकंदर' जैसी फिल्मों में उनकी जोड़ी अमिताभ बच्चन के साथ दर्शकों की फेवरेट रही।
उनका करियर इतना शानदार था कि 1980 के दशक में वे इंडस्ट्री के सबसे ज्यादा फीस लेने वाले अभिनेताओं में शामिल थे। लेकिन इसी दौर में उन्होंने एक बड़ा फैसला लिया। 1982 में वह अपने आध्यात्मिक गुरु ओशो की शरण में चले गए और फिल्मों से दूरी बना ली। करीब पांच साल बाद 1987 में फिल्म 'इंसाफ' से उन्होंने वापसी की, और फिर से दर्शकों के दिलों पर राज किया।
विनोद खन्ना को उनके अभिनय के लिए कई पुरस्कार मिले। उनके अभिनय की तारीफ हर जगह हुई और फिल्मी जगत ने उन्हें दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से भी सम्मानित किया। इसके अलावा, वह राजनीति में भी सक्रिय रहे और भाजपा के नेता के तौर पर कई बार लोकसभा चुनाव जीत चुके थे।
27 अप्रैल 2017 को विनोद खन्ना का निधन हो गया। कैंसर से लंबी लड़ाई के बाद उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया, लेकिन आज भी उनकी यादें और उनकी फिल्मों का जादू दर्शकों के दिलों में बसा हुआ है।
--आईएएनएस
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