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29 सित. से शुरू हो रहे श्राद्ध कर्म, जानें इसकी पौराणिक कथा और सबसे श्रेष्ठ समय

शुक्रवार,
29 सितंबर को भाद्रपद की
पूर्णिमा है और इस
दिन ये महीना खत्म
हो जाएगा। शुक्रवार को पूर्णिमा पर
श्राद्ध किया जाएगा। इसके
बाद 30 सितंबर यानी आश्विन मास
के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा
से पितृ पक्ष शुरू
होगा। भादौ पूर्णिमा पर
विष्णु-लक्ष्मी की पूजा के
साथ ही पितरों के
लिए धूप-ध्यान और
दान-पुण्य जरूर करें। श्राद्ध
कर्म पितरों के निहित किए
जाते हैं ताकि उन्हें
तृप्ति मिल सकें। भाद्र
शुक्ल पूर्णिमा का धार्मिक दृष्टि
से बड़ा ही महत्व
है। इस दिन अगस्त
मुनि सहित ऋषियों के
नाम से तर्पण किया
जाता है और उन्हें
जल दिया जाता है।
श्राद्धपक्ष में पिंडदान, तर्पण
या पितृपूजा करने का एक
निश्चित समय नियुक्त
है। इस समय में
ही पितृलोक से पितृ धरती
पर पधारते हैं जिसके चलते
श्राद्ध कर्म का यह
श्रेष्ठ समय होता है।
आज इस कड़ी में हम आपको बताने जा रहे हैं श्राद्ध से जुड़ी पौराणिक कथा और इसका सबसे श्रेष्ठ समय। आइये जानते हैं इनके बारे में...
श्राद्ध पर्व की पौराणिक कथा
धरती पर आतापी और वातापी नामक राक्षस हुए जो ऋषियों को खा जाया करते थे। ऐसे में सभी ऋषियों ने मिलकर महान तेजस्वी अगस्त मुनि से निवेदन किया कि उनके कष्ट का निदान करें। अगस्त मुनि ने अपने तपोबल से इन असुरों का अंत कर दिया। इसके बाद से अगस्त मुनि के प्रति आभार प्रकट करने के लिए ऋषि मुनियों ने इन्हें जल देना शुरू किया।
एक अन्य कथा के अनुसार वृत्रासुर के वध के बाद सभी राक्षस डरकर समुद्र में जाकर छुप गए। ऐसे में देवताओं के लिए इन्हें मार पाना कठिन हो गया। राक्षस रात को जल से निकलकर ऋषि मुनियों को खा जाया करते थे। ऐसे में देवताओं ने भगवान विष्णु के निर्देश पर अगस्त्य मुनि से सहायता मांगी। अगस्त मुनि ने अंजुली में समुद्र का सारा जल लिय और उसे पूरा पी गए। इससे जल में छुपे राक्षस दिखने लगे और देवताओं ने उन्हें मार डाला। इसके बाद जल में रहने वाले जीव व्याकुल हो उठे।
देवताओं ने कहा कि भाद्र शुक्ल पूर्णिमा को पितृपक्ष आरंभ होने से पहले सभी आपको जल देंगे। आपने जो अपने पेट में समुद्र को रखा हुआ है उसे मुक्त कर दीजिए। अगस्त मुनि ने समुद्र को मुक्त कर दिया। और इसके बाद से अगस्त मुनि के नाम से भाद्र शुक्ल पूर्णिमा के दिन अगस्त मुनि और उनकी पत्नी लोपामुद्रा के साथ अन्य ऋषियों के नाम से तर्पण किया जाता है और जल दिया जाता है। ऋषि तर्पण के बाद अगले दिन यानी आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से श्राद्ध पक्ष आरंभ होता है।
श्राद्ध कर्म करने का कौनसा समय सबसे श्रेष्ठ
कुतुप काल : कुतुप काल दिन के 11:30 बजे से 12:30 के मध्य का समय होता है। वैसे 'कुतुप बेला' दिन का आठवां मुहुर्त होता है। पाप का शमन करने के कारण इसे 'कुतुप' कहा गया है।
अभिजीत मुहूर्त : अभिजीत मुहूर्त हर दिन के हिसाब से अलग अलग होता है। किसी दिन यह नहीं भी रहता है। यह कुतुप काल के आसपास का ही मुहूर्त होता है।
रोहिणी काल : रोहिणी काल अर्थात रोहिणी नक्षत्र काल के दौरान श्राद्ध किया जा सकता है।
मध्याह्नकाल : यदि कुतुप, अभिजीत या रोहिणी काल ज्ञात न हो तो मध्याह्नकाल में श्राद्ध करना श्रेष्ठ रहता है। यानी श्राद्ध का समय तब होता है जब सूर्य की छाया पैरों पर पड़ने लगे।
आज इस कड़ी में हम आपको बताने जा रहे हैं श्राद्ध से जुड़ी पौराणिक कथा और इसका सबसे श्रेष्ठ समय। आइये जानते हैं इनके बारे में...
श्राद्ध पर्व की पौराणिक कथा
धरती पर आतापी और वातापी नामक राक्षस हुए जो ऋषियों को खा जाया करते थे। ऐसे में सभी ऋषियों ने मिलकर महान तेजस्वी अगस्त मुनि से निवेदन किया कि उनके कष्ट का निदान करें। अगस्त मुनि ने अपने तपोबल से इन असुरों का अंत कर दिया। इसके बाद से अगस्त मुनि के प्रति आभार प्रकट करने के लिए ऋषि मुनियों ने इन्हें जल देना शुरू किया।
एक अन्य कथा के अनुसार वृत्रासुर के वध के बाद सभी राक्षस डरकर समुद्र में जाकर छुप गए। ऐसे में देवताओं के लिए इन्हें मार पाना कठिन हो गया। राक्षस रात को जल से निकलकर ऋषि मुनियों को खा जाया करते थे। ऐसे में देवताओं ने भगवान विष्णु के निर्देश पर अगस्त्य मुनि से सहायता मांगी। अगस्त मुनि ने अंजुली में समुद्र का सारा जल लिय और उसे पूरा पी गए। इससे जल में छुपे राक्षस दिखने लगे और देवताओं ने उन्हें मार डाला। इसके बाद जल में रहने वाले जीव व्याकुल हो उठे।
देवताओं ने कहा कि भाद्र शुक्ल पूर्णिमा को पितृपक्ष आरंभ होने से पहले सभी आपको जल देंगे। आपने जो अपने पेट में समुद्र को रखा हुआ है उसे मुक्त कर दीजिए। अगस्त मुनि ने समुद्र को मुक्त कर दिया। और इसके बाद से अगस्त मुनि के नाम से भाद्र शुक्ल पूर्णिमा के दिन अगस्त मुनि और उनकी पत्नी लोपामुद्रा के साथ अन्य ऋषियों के नाम से तर्पण किया जाता है और जल दिया जाता है। ऋषि तर्पण के बाद अगले दिन यानी आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से श्राद्ध पक्ष आरंभ होता है।
श्राद्ध कर्म करने का कौनसा समय सबसे श्रेष्ठ
कुतुप काल : कुतुप काल दिन के 11:30 बजे से 12:30 के मध्य का समय होता है। वैसे 'कुतुप बेला' दिन का आठवां मुहुर्त होता है। पाप का शमन करने के कारण इसे 'कुतुप' कहा गया है।
अभिजीत मुहूर्त : अभिजीत मुहूर्त हर दिन के हिसाब से अलग अलग होता है। किसी दिन यह नहीं भी रहता है। यह कुतुप काल के आसपास का ही मुहूर्त होता है।
रोहिणी काल : रोहिणी काल अर्थात रोहिणी नक्षत्र काल के दौरान श्राद्ध किया जा सकता है।
मध्याह्नकाल : यदि कुतुप, अभिजीत या रोहिणी काल ज्ञात न हो तो मध्याह्नकाल में श्राद्ध करना श्रेष्ठ रहता है। यानी श्राद्ध का समय तब होता है जब सूर्य की छाया पैरों पर पड़ने लगे।
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