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अतृप्त आत्माओं की तृप्ति के लिए किया जाता है श्राद्ध, जानिये कौवे को श्राद्ध का भोजन कराने का कारण

हर साल श्राद्ध पर्व
भाद्रपद की पूर्णिमा से आश्विन माह
की अमावस्या तक 16 दिनों के लिए आते
हैं। वर्ष 2023 का श्राद्ध पर्व 29 सितम्बर
भाद्रपद की पूर्णिमा से शुरू हो रहा है और यह आश्विन माह की अमावस्या 14 अक्टूबर तक
रहेगा। श्राद्ध के बारे में युगों से यह कहा जाता रहा है कि यह पूर्वजों और अतृप्त आत्माओं
को सद्गति हेतु किया जाता है। श्राद्ध
कर्म करना एक सभ्य
मनुष्य की निशानी है।
प्रत्येक पुत्र या पौत्र या
उसके सगे संबंधियों का
उत्तरदायित्व होता है कि
अपने पूर्वजों की तृप्ति के
लिए श्राद्ध कर्म करे। इसमें
पितरों के नाम से
जल और अन्न का
दान किया जाता है
और उनके नियमित कौवे
को भी अन्न-जल
दिया जाता है।
आज हम अपने पाठकों को इस बात की जानकारी देने जा रहे हैं कि पूर्वजों की अतृप्ति को दूर करने के लिए किए जाने वाले श्राद्ध का कौवे से क्या रिश्ता है। आप सभी अपने पूर्वजों के लिए किए जाने वाले श्राद्ध के लिए जो भोजन सामग्री बनाते हैं, उसमें से सबसे पहले कौवे के लिए निवाला निकाला जाता है। कई परिजनों द्वारा कौवे के लिए अलग से बनाई गई सभी सामग्रियों को कौवे को खिलाते हैं। आइए जानते हैं कौवे को श्राद्ध का भोजन कराने का रहस्य—
अतृप्ति का कारण
अतृप्त इच्छाएं, जैसे भूखा, प्यासा, संभोगसुख से विरक्त, राग, क्रोध, द्वेष, लोभ, वासना आदि इच्छाएं और भावनाएं रखने वाले को और अकाल मृत्यु मरने वालों के लिए—जैसे हत्या, आत्महत्या, दुर्घटना या किसी रोग के चलते असमय ही मर जाना—आदि के लिए श्राद्ध करना जरूरी है। ऐसी आत्माओं को दूसरा जन्म मिलने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है या कि वह अधोगति में चली जाती हैं। उन्हें इन सभी से बचाने के लिए पिंडदान, तर्पण और पूजा करना जरूरी होता है।
अतृप्ति के और भी कई कारण होते हैं। जैसे धर्म को नहीं जानना, गलत धारणा पालना, अनजाने में अपराध या बुरे कर्म करना। हत्या करना, आत्महत्या करना, बलात्कार, हर समय किसी न किसी का अहित करना या किसी भी निर्दोष मनुष्य या प्राणी को सताना, चोर, डकैत, अपराधी, धूर्त, क्रोधी, नशेड़ी और कामी आदि लोग मरने के बाद बहुत ज्यादा दु:ख और संकट में फंस जाते हैं, क्योंकि कर्मों का भुगतान तो सभी को करना ही होता है।
पितृ पक्ष एक ऐसा पक्ष है जहाँ इस प्रकार की सभी तरह की आत्माओं की मुक्ति का द्वार खुल जाता है। तब धरती पर पितृयाण रहता है। जैसे पशुओं का भोजन तृण और मनुष्यों का भोजन अन्न कहलाता है, वैसे ही देवता और पितरों का भोजन अन्न का 'सार तत्व' है। सार तत्व अर्थात गंध, रस और उष्मा। देवता और पितर गंध तथा रस तत्व से तृप्त होते हैं।
क्यों खिलाया जाता हैं कौवे को श्राद्ध का भोजन
कौवे को यम का प्रतीक माना जाता है। गरुण पुराण के अनुसार, अगर कौआ श्राद्ध का भोजन ग्रहण कर ले तो पितरों की आत्मा को शांति मिलती है। साथ ही ऐसा होने से यम भी खुश होते हैं और उनका संदेश उनके पितरों तक पहुंचाते हैं। गरुण पुराण में बताया गया है कि कौवे को यम का वरदान प्राप्त है। यम ने कौवे को वरदान दिया था तुमको दिया गया भोजन पूर्वजों की आत्मा को शांति देगा। पितृ पक्ष में ब्राह्मणों को भोजन कराने के साथ-साथ कौवे को भोजन करना भी बेहद जरूरी होता है। मान्यता है कि इस दौरान पितर कौवे के रूप में भी हमारे पास आ सकते हैं।
इसको लेकर एक और मान्यता प्रचलित है। कहा जाता है कि एक बार कौवे ने माता सीता के पैरों में चोंच मार दी थी। इसे देखकर श्रीराम ने अपने बाण से उसकी आंखों पर वार कर दिया और कौवे की आंख फूट गई। कौवे को जब इसका पछतावा हुआ तो उसने श्रीराम से क्षमा मांगी तब भगवान राम ने आशीर्वाद स्वरूप कहा कि तुमको खिलाया गया भोजन पितरों को तृप्त करेगा। भगवान राम के पास जो कौवे का रूप धारण करके पहुँचा था, वह देवराज इंद्र के पुत्र जयंती थे। तभी से कौवे को श्राद्ध पक्ष में भोजन खिलाने का विशेष महत्व है।
आज हम अपने पाठकों को इस बात की जानकारी देने जा रहे हैं कि पूर्वजों की अतृप्ति को दूर करने के लिए किए जाने वाले श्राद्ध का कौवे से क्या रिश्ता है। आप सभी अपने पूर्वजों के लिए किए जाने वाले श्राद्ध के लिए जो भोजन सामग्री बनाते हैं, उसमें से सबसे पहले कौवे के लिए निवाला निकाला जाता है। कई परिजनों द्वारा कौवे के लिए अलग से बनाई गई सभी सामग्रियों को कौवे को खिलाते हैं। आइए जानते हैं कौवे को श्राद्ध का भोजन कराने का रहस्य—
अतृप्ति का कारण
अतृप्त इच्छाएं, जैसे भूखा, प्यासा, संभोगसुख से विरक्त, राग, क्रोध, द्वेष, लोभ, वासना आदि इच्छाएं और भावनाएं रखने वाले को और अकाल मृत्यु मरने वालों के लिए—जैसे हत्या, आत्महत्या, दुर्घटना या किसी रोग के चलते असमय ही मर जाना—आदि के लिए श्राद्ध करना जरूरी है। ऐसी आत्माओं को दूसरा जन्म मिलने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है या कि वह अधोगति में चली जाती हैं। उन्हें इन सभी से बचाने के लिए पिंडदान, तर्पण और पूजा करना जरूरी होता है।
अतृप्ति के और भी कई कारण होते हैं। जैसे धर्म को नहीं जानना, गलत धारणा पालना, अनजाने में अपराध या बुरे कर्म करना। हत्या करना, आत्महत्या करना, बलात्कार, हर समय किसी न किसी का अहित करना या किसी भी निर्दोष मनुष्य या प्राणी को सताना, चोर, डकैत, अपराधी, धूर्त, क्रोधी, नशेड़ी और कामी आदि लोग मरने के बाद बहुत ज्यादा दु:ख और संकट में फंस जाते हैं, क्योंकि कर्मों का भुगतान तो सभी को करना ही होता है।
पितृ पक्ष एक ऐसा पक्ष है जहाँ इस प्रकार की सभी तरह की आत्माओं की मुक्ति का द्वार खुल जाता है। तब धरती पर पितृयाण रहता है। जैसे पशुओं का भोजन तृण और मनुष्यों का भोजन अन्न कहलाता है, वैसे ही देवता और पितरों का भोजन अन्न का 'सार तत्व' है। सार तत्व अर्थात गंध, रस और उष्मा। देवता और पितर गंध तथा रस तत्व से तृप्त होते हैं।
क्यों खिलाया जाता हैं कौवे को श्राद्ध का भोजन
कौवे को यम का प्रतीक माना जाता है। गरुण पुराण के अनुसार, अगर कौआ श्राद्ध का भोजन ग्रहण कर ले तो पितरों की आत्मा को शांति मिलती है। साथ ही ऐसा होने से यम भी खुश होते हैं और उनका संदेश उनके पितरों तक पहुंचाते हैं। गरुण पुराण में बताया गया है कि कौवे को यम का वरदान प्राप्त है। यम ने कौवे को वरदान दिया था तुमको दिया गया भोजन पूर्वजों की आत्मा को शांति देगा। पितृ पक्ष में ब्राह्मणों को भोजन कराने के साथ-साथ कौवे को भोजन करना भी बेहद जरूरी होता है। मान्यता है कि इस दौरान पितर कौवे के रूप में भी हमारे पास आ सकते हैं।
इसको लेकर एक और मान्यता प्रचलित है। कहा जाता है कि एक बार कौवे ने माता सीता के पैरों में चोंच मार दी थी। इसे देखकर श्रीराम ने अपने बाण से उसकी आंखों पर वार कर दिया और कौवे की आंख फूट गई। कौवे को जब इसका पछतावा हुआ तो उसने श्रीराम से क्षमा मांगी तब भगवान राम ने आशीर्वाद स्वरूप कहा कि तुमको खिलाया गया भोजन पितरों को तृप्त करेगा। भगवान राम के पास जो कौवे का रूप धारण करके पहुँचा था, वह देवराज इंद्र के पुत्र जयंती थे। तभी से कौवे को श्राद्ध पक्ष में भोजन खिलाने का विशेष महत्व है।
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