मधुराष्टकम् अपने नाम की तरह ही बहुत मधुर है, आनंददायक है!
मासिक कृष्ण जन्माष्टमी पूजा - 00:15 से 01:02, 23 मार्च 2025
कृष्ण अष्टमी प्रारम्भ - 04:23, 22 मार्च 2025
कृष्ण अष्टमी समाप्त - 05:23, 23 मार्च 2025
मुंबई। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के पावन अवसर पर मधुराष्टकम् का गायन जीवन में धन, आनंद और शुभता की वर्षा कर देता है। भगवान श्रीकृष्ण की अद्भुत लीलाओं, दिव्य रूप और अलौकिक सौंदर्य का वर्णन करने वाले भजनों में मधुराष्टकम् का विशेष स्थान है। यह स्तोत्र अपने नाम की तरह ही अत्यंत मधुर, आनंददायक और धनदायक है।
महान संत श्री वल्लभाचार्य द्वारा रचित यह स्तोत्र भगवान श्रीकृष्ण की सम्पूर्ण मधुरता का वर्णन करता है। इसमें श्रीकृष्ण के रूप, गुण, वाणी, वेष, चलन, हास्य, मन, हृदय, चरित्र और क्रीड़ा को "मधुर" कहकर संबोधित किया गया है। जब कोई भक्त श्रद्धा और प्रेम से इसका पाठ करता है, तो उसका हृदय भक्ति और आनंद से भर जाता है।
भगवान की मधुरता का वर्णन
"अधरं मधुरं, वदनं मधुरं नयनं मधुरं, हसितं मधुरं। हृदयं मधुरं, गमनं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥"
इस स्तोत्र में भगवान के अधर, वदन, नयन, हास्य, हृदय, गमन, वचन, वेष, यश, ध्वनि, वीणा, लीला सहित सम्पूर्ण स्वरूप की अलौकिक मधुरता का वर्णन है। यह पाठ करने से मन शांत होता है, सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और जीवन में धन, सुख और समृद्धि का आगमन होता है।
जन्माष्टमी के दिन मधुराष्टकम् का पाठ करने से भगवान श्रीकृष्ण की कृपा शीघ्र प्राप्त होती है। यह भजन जीवन में शांति, सौभाग्य और आध्यात्मिक उत्थान लाने वाला है। जो भी इसे श्रद्धा से गाता या सुनता है, उसे भक्ति, प्रेम और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
॥ मधुराष्टकम् ॥
अधरं मधुरं वदनं मधुरंनयनं मधुरं हसितं मधुरम्।
हृदयं मधुरं गमनं मधुरंमधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥1॥
वचनं मधुरं चरितं मधुरंवसनं मधुरं वलितं मधुरम्।
चलितं मधुरं भ्रमितं मधुरंमधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥2॥
वेणुर्मधुरो रेणुर्मधुरःपाणिर्मधुरः पादौ मधुरौ।
नृत्यं मधुरं सख्यं मधुरंमधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥3॥
गीतं मधुरं पीतं मधुरंभुक्तं मधुरं सुप्तं मधुरम्।
रूपं मधुरं तिलकं मधुरंमधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥4॥
करणं मधुरं तरणं मधुरंहरणं मधुरं रमणं मधुरम्।
वमितं मधुरं शमितं मधुरंमधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥5॥
गुञ्जा मधुरा माला मधुरायमुना मधुरा वीची मधुरा।
सलिलं मधुरं कमलं मधुरंमधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥6॥
गोपी मधुरा लीला मधुरायुक्तं मधुरं मुक्तं मधुरम्।
दृष्टं मधुरं शिष्टं मधुरंमधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥7॥
गोपा मधुरा गावो मधुरायष्टिर्मधुरा सृष्टिर्मधुरा।
दलितं मधुरं फलितं मधुरंमधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥8॥
॥ इति श्रीमद्वल्लभाचार्यकृतं मधुराष्टकं सम्पूर्णम् ॥
-प्रदीप लक्ष्मीनारायण द्विवेदी, बॉलीवुड एस्ट्रो एडवाइजर
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