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कार्तिक माह के शुल्क पक्ष की अष्टमी को मनाई जाती है गोपष्टमी, जानिये पूजा का शुभ मुहूर्त

हिंदू धर्म में कार्तिक
माह में कई महत्वपूर्ण
त्योहार मनाए जाते हैं।
दीपावली की बाद छठ
पर्व सबसे बड़ा त्योहार
आता है और इसी
दौरान गोपाष्टमी व्रत भी रखा
जाता है। पौराणिक मान्यता
के अनुसार, हर साल गोपाष्टमी
तिथि कार्तिक शुक्ल पक्ष की अष्टमी
तिथि को आती है।
इस साल गोपाष्टमी व्रत
20 नवंबर 2023, सोमवार को रखा जाएगा।
जिसमें भगवान कृष्ण और बलराम के
साथ-साथ गौ माता
की पूजा की जाती
है।
गोपाष्टमी पूजन का शुभ मुहूर्त जगतपुरा, प्रताप नगर सांगानेर स्थित कैर के बालाजी के पुजारी मुकेश शर्मा के मुताबिक, इस साल गोपाष्टमी तिथि का आरंभ 20 नवंबर को सुबह 05:21 बजे होगा और अष्टमी तिथि 21 नवम्बर को सुबह 03:16 बजे समाप्त होगी।
गोपाष्टमी पूजन का महत्व उत्तर भारत में ज्यादा है और यह त्योहार मथुरा, वृन्दावन तथा ब्रज के अन्य क्षेत्रों में अधिक प्रसिद्ध है।
पौराणिक कथा पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, भगवान कृष्ण ने ब्रजवासियों को इन्द्र के प्रकोप से बचाने के लिए गोवर्धन पूजा के दिन ही गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठा (छोटी उंगली) पर उठा लिया था। इस दौरान इंद्रदेव ने लगातार 7 दिनों तक बारिश की थी, लेकिन आखिरकार इन्द्र देव ने गोपाष्टमी के दिन अपनी पराजय स्वीकार कर ली थी। इंद्रदेव को भेंट नहीं दी तो हो गए नाराज पौराणिक ग्रंथों में इस बात का भी जिक्र मिलता है कि भगवान कृष्ण ने ब्रजवासियों को इन्द्र देव को दी जाने वाली वार्षिक भेंट देने से रोकने का सुझाव दिया था। भगवान कृष्ण के इस सुझाव को जब ब्रजवासियों ने मान लिया था तो इन्द्र देव नाराज हो गए थे और ब्रज क्षेत्र को बाढ़ में डुबाने का फैसला किया था। भगवान कृष्ण ने ब्रज के लोग तथा उनके पशु धन को गोवर्धन पर्वत की विशाल छत्रछाया के नीचे सुरक्षित कर लिया था। यही कारण है कि गोपाष्टमी पर गायों, बछड़ों को सजाया जाता है और उनकी पूजा की जाती है।
गोपाष्टमी पूजन का शुभ मुहूर्त जगतपुरा, प्रताप नगर सांगानेर स्थित कैर के बालाजी के पुजारी मुकेश शर्मा के मुताबिक, इस साल गोपाष्टमी तिथि का आरंभ 20 नवंबर को सुबह 05:21 बजे होगा और अष्टमी तिथि 21 नवम्बर को सुबह 03:16 बजे समाप्त होगी।
गोपाष्टमी पूजन का महत्व उत्तर भारत में ज्यादा है और यह त्योहार मथुरा, वृन्दावन तथा ब्रज के अन्य क्षेत्रों में अधिक प्रसिद्ध है।
पौराणिक कथा पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, भगवान कृष्ण ने ब्रजवासियों को इन्द्र के प्रकोप से बचाने के लिए गोवर्धन पूजा के दिन ही गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठा (छोटी उंगली) पर उठा लिया था। इस दौरान इंद्रदेव ने लगातार 7 दिनों तक बारिश की थी, लेकिन आखिरकार इन्द्र देव ने गोपाष्टमी के दिन अपनी पराजय स्वीकार कर ली थी। इंद्रदेव को भेंट नहीं दी तो हो गए नाराज पौराणिक ग्रंथों में इस बात का भी जिक्र मिलता है कि भगवान कृष्ण ने ब्रजवासियों को इन्द्र देव को दी जाने वाली वार्षिक भेंट देने से रोकने का सुझाव दिया था। भगवान कृष्ण के इस सुझाव को जब ब्रजवासियों ने मान लिया था तो इन्द्र देव नाराज हो गए थे और ब्रज क्षेत्र को बाढ़ में डुबाने का फैसला किया था। भगवान कृष्ण ने ब्रज के लोग तथा उनके पशु धन को गोवर्धन पर्वत की विशाल छत्रछाया के नीचे सुरक्षित कर लिया था। यही कारण है कि गोपाष्टमी पर गायों, बछड़ों को सजाया जाता है और उनकी पूजा की जाती है।
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