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त्रिपुरा सुंदरी के भक्त पद-प्रतिष्ठा के लिए रविवार को देवी कूष्मांडा की आराधना करें!
दुर्गतिनाशिनी त्वंहि दरिद्रादि विनाशनीम्।
जयंदा धनदा कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
जगतमाता जगतकत्री जगदाधार रूपणीम्।
चराचरेश्वरी कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
त्रैलोक्यसुन्दरी त्वंहि दुःख शोक निवारिणीम्।
परमानन्दमयी, कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
हे देवी कूष्मांडा.... आप दुर्भाग्य का नाश करने वाली, दरिद्रता आदि का नाश करने वाली हैं। जयंदा, धन की दाता, कूष्मांडा को नमस्कार है। ब्रह्माण्ड की माता, ब्रह्माण्ड की निर्माता, ब्रह्माण्ड का आधार बनी। मैं सभी चर और अचर प्राणियों की देवी कुष्मांडा को प्रणाम करता हूं। आप तीनों लोकों में सबसे सुंदर हैं और दुःख और शोक को दूर करने वाली हैं, मैं परम आनंद से परिपूर्ण कुष्मांडा को प्रणाम करता हूं।
देवी दुर्गा के नौ रूप हैं, जिनकी नवरात्रि में आराधना की जाती है। देवी दुर्गा का चौथा स्वरूप कूष्मांडा है। देवी कूष्मांडा, सिंह पर सवार हैं और सूर्यलोक में निवास करती हैं, जो क्षमता किसी भी अन्य देवी-देवता में नहीं है, इसलिए जब कोई कारक ग्रह अस्त हो जाए तो देवी कूष्मांडा की आराधना करनी चाहिए। देवी कूष्मांडा अष्टभुजा धारी हैं और अस्त्र-शस्त्र के साथ माता के एक हाथ में अमृत कलश भी है। देवी कूष्मांडा की पूजा-अर्चना से असाध्य रोगों से मुक्ति मिलती है।
देवी कूष्मांडा की पूजा-अर्चना से सूर्य ग्रह की अनुकुलता प्राप्त होती है इसलिए सिंह राशिवालों को देवी की आराधना से संपूर्ण सुख की प्राप्ति होती है। जिन श्रद्धालुओं की सूर्य की दशा-अन्तरदशा चल रही हो उन्हें भी देवी कूष्मांडा की पूजा-अर्चना करनी चाहिए। सम्मान, सफलता आदि की कामना रखनेवाले श्रद्धालुओं को देवी कूष्मांडा की आराधना करनी चाहिए। जिन श्रद्धालुओं के पिता से मतभेद हों वे संकल्प लेकर देवी कूष्मांडा की आराधना करें, विवाद से राहत मिलेगी।
- प्रदीप लक्ष्मीनारायण द्विवेदी -
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