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फिल्म समीक्षा: इमोशन्स के साथ दिल छूती है जर्सी, रुलाएगी
लेखक निर्देशक गौतम तिन्ननुरी, जिन्होंने मूल तमिल फिल्म जर्सी को भी लिखा व निर्देशित किया था, की कहानी बढिय़ा है। फिल्म की पटकथा दर्शकों को अपने साथ इस तरह बांधे रखती है जैसे वो इसका हिस्सा हों। गौतम ने फिल्म के भावनात्मक दृश्यों को संजीदगी और खूबसूरती के साथ लिखा है। दो दृश्यों का उल्लेख करना चाहेंगे—पहला दृश्य जब एक पिता अपने बच्चे को उसके जन्म दिन पर थप्पड़ मारता है और दूसरा जब वह अपनी पत्नी के पर्स से 500 रुपये निकालता है और चोर समझा जाता है। ये दो ऐसे दृश्य हैं जो दर्शकों को रुलाने में सफल होते हैं। क्लाइमैक्स से पूर्व तक फिल्म का सस्पेंस बरकरार है जो दर्शकों को यह लगने के बाद भी कि फिल्म खत्म हो गई उठने नहीं देता है। कथा-पटकथा के साथ-साथ गौतम का निर्देशन सराहनीय है। शाहिद कपूर की तरह वे भी इस फिल्म के नायक हैं।
सचेत परम्परा ने संगीत बढिय़ा दिया है। गीतों के बोल वजनदार हैं। दो गीत माहिया मैनु और मेहरम लोकप्रिय होंगे।
कुल मिलाकर जर्सी जबरदस्त पारिवारिक ड्रामा है जिसमें शुरूआती बोरियत के बाद दर्शकों को अपने साथ जोडऩे की क्षमता है। हालांकि केजीएफ-2 के सामने इसे कोई बड़ी ओपनिंग नहीं मिली है लेकिन यह फिल्म दर्शकों के जहन में अर्से से छायी रहेगी। इस फिल्म को धीरे-धीरे माउथ पब्लिसिटी के बूते बॉक्स ऑफिस पर जबरदस्त कामयाबी मिलेगी।
सचेत परम्परा ने संगीत बढिय़ा दिया है। गीतों के बोल वजनदार हैं। दो गीत माहिया मैनु और मेहरम लोकप्रिय होंगे।
कुल मिलाकर जर्सी जबरदस्त पारिवारिक ड्रामा है जिसमें शुरूआती बोरियत के बाद दर्शकों को अपने साथ जोडऩे की क्षमता है। हालांकि केजीएफ-2 के सामने इसे कोई बड़ी ओपनिंग नहीं मिली है लेकिन यह फिल्म दर्शकों के जहन में अर्से से छायी रहेगी। इस फिल्म को धीरे-धीरे माउथ पब्लिसिटी के बूते बॉक्स ऑफिस पर जबरदस्त कामयाबी मिलेगी।
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