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देहदान और अंगदान है महादान - अविनाश राय खन्ना
मृत्यु के उपरान्त मृत शरीर को अस्पताल पहुँचाना परिजनों का प्रथम दायित्व
माना जाता है। इसमें मृतक के प्रति सम्मान की भावना भी व्यक्त होती है कि
परिजन स्वयं मृत शरीर को अन्तिम यात्रा की तरह अस्पताल तक पहुँचाकर आयें।
शरीर रचना विभाग के द्वारा मृत शरीर को सौंपते समय किसी प्रकार की धार्मिक
क्रियाएँ अस्पताल में करने की अनुमति नहीं होती। धार्मिक क्रियाएँ तथा
सम्मानस्वरूप पुष्पादि चढ़ाने की रस्म भी घर पर ही कर लेनी चाहिए। कुछ
परिवारों में शाॅल आदि ओढ़ाने की रस्म होती है। देह दान के समय ओढ़ाये गये
शाॅलों को उतार कर अस्पताल के ही सफाईकर्मियों आदि में वितरित कर देना
चाहिए।
परन्तु देह दान करने वाले परिवारों की वेदना उस समय और अधिक बढ़ जाती है जब उनके मृत परिजन की देह को सम्मानजनक तरीके से स्वीकार करने वाला कोई व्यक्ति अस्पताल के सम्बन्धित विभाग में दिखाई ही नहीं देता। हाल ही में माहिलपुर के पास एक गाँव के एक परिवार में मृत्यु होने पर मृतक के देह दान संकल्प को देखते हुए परिजन उसकी देह को सी.एम.सी. अस्पताल, लुधियाना में ले गये। अस्पताल के सम्बन्धित विभाग में उस देह को स्वीकार करने वाला कोई नहीं था। परिणामतः एक दिन बाद परिवार के लोगों को पुनः जाकर मृतक की देह सम्बन्धित विभाग को सौंपनी पड़ी। इतना ही नहीं व्यक्ति के मृत होने की जाँच करने के लिए जो परीक्षण आदि करने थे उसके लिए भी परिजनों से धन वसूला गया। यदि देहदान करने वाले परिवारों को इस प्रकार परेशानियों का सामना करना पड़ेगा तो लोग देहदान के लिए हतोत्साहित होने लगेंगे। इसलिए देह दान विभाग में 24 घण्टे कोई न कोई जिम्मेदार अधिकारी मृत देह को प्राप्त करने के लिए अवश्य उपस्थित रहना चाहिए। देहदान करने वाले परिवारों को अस्पताल द्वारा एक कृतज्ञता पत्र भी जारी करना चाहिए। परिवार और अस्पताल मृत व्यक्ति के क्रिया संस्कार में भी जनता के बीच देहदान का उल्लेख करें जिससे अन्य लोगों में भी इस कार्य के प्रति चेतना का विकास हो।
हाल ही में मोटर वाहन अधिनियम में किये गये संशोधनों में एक नई परम्परा प्रारम्भ की जा रही है जिसमें चालक लाइसेंस लेते समय भरे गये फार्म में ही एक विशेष कालम के माध्यम से प्रार्थी को यह बताना होगा कि वह मोटर दुर्घटना में मृत्यु होने पर अपने अंगदान करने के लिए तैयार है या नहीं। उसका उत्तर ड्राइविंग लाइसेंस पर ही अंकित होगा जिससे मोटर दुर्घटना में मृत्यु होने पर मृत शरीर के अंग देश के किसी अन्य नागरिक के लिए प्रयोग करना सम्भव हो सकेगा।
लेखक भारतीय रेड क्रास सोसाईटी के उपसभापति है।
avinkhannamp@gmail.com
परन्तु देह दान करने वाले परिवारों की वेदना उस समय और अधिक बढ़ जाती है जब उनके मृत परिजन की देह को सम्मानजनक तरीके से स्वीकार करने वाला कोई व्यक्ति अस्पताल के सम्बन्धित विभाग में दिखाई ही नहीं देता। हाल ही में माहिलपुर के पास एक गाँव के एक परिवार में मृत्यु होने पर मृतक के देह दान संकल्प को देखते हुए परिजन उसकी देह को सी.एम.सी. अस्पताल, लुधियाना में ले गये। अस्पताल के सम्बन्धित विभाग में उस देह को स्वीकार करने वाला कोई नहीं था। परिणामतः एक दिन बाद परिवार के लोगों को पुनः जाकर मृतक की देह सम्बन्धित विभाग को सौंपनी पड़ी। इतना ही नहीं व्यक्ति के मृत होने की जाँच करने के लिए जो परीक्षण आदि करने थे उसके लिए भी परिजनों से धन वसूला गया। यदि देहदान करने वाले परिवारों को इस प्रकार परेशानियों का सामना करना पड़ेगा तो लोग देहदान के लिए हतोत्साहित होने लगेंगे। इसलिए देह दान विभाग में 24 घण्टे कोई न कोई जिम्मेदार अधिकारी मृत देह को प्राप्त करने के लिए अवश्य उपस्थित रहना चाहिए। देहदान करने वाले परिवारों को अस्पताल द्वारा एक कृतज्ञता पत्र भी जारी करना चाहिए। परिवार और अस्पताल मृत व्यक्ति के क्रिया संस्कार में भी जनता के बीच देहदान का उल्लेख करें जिससे अन्य लोगों में भी इस कार्य के प्रति चेतना का विकास हो।
हाल ही में मोटर वाहन अधिनियम में किये गये संशोधनों में एक नई परम्परा प्रारम्भ की जा रही है जिसमें चालक लाइसेंस लेते समय भरे गये फार्म में ही एक विशेष कालम के माध्यम से प्रार्थी को यह बताना होगा कि वह मोटर दुर्घटना में मृत्यु होने पर अपने अंगदान करने के लिए तैयार है या नहीं। उसका उत्तर ड्राइविंग लाइसेंस पर ही अंकित होगा जिससे मोटर दुर्घटना में मृत्यु होने पर मृत शरीर के अंग देश के किसी अन्य नागरिक के लिए प्रयोग करना सम्भव हो सकेगा।
लेखक भारतीय रेड क्रास सोसाईटी के उपसभापति है।
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