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ऋषिचिंतन: आशावाद—अमृतोपम औषधि

आशावाद
मनुष्य के लिए अमृत तुल्य है । जैसे तृषित को शीतल जल से, रोगी को औषधि से, अन्धकार
को प्रकाश से, वनस्पति को सूर्य से लाभ होता है, उसी भांति आशावाद की संजीवनी बूटी
से मृत प्राय: मनुष्य में जीवन शक्ति का प्रादुर्भाव होता है । आशावद वह दिव्य प्रकाश
है जो हमारे जीवन को उत्तरोत्तर परिपुष्ट, समृद्धशाली और प्रगतिशील बनाता है । सुख
सौन्दर्य एवं अलौकिक छटा से उसे विभूषित कर उसका पूर्ण विकास करता है । उसमें माधुर्य
का संचार कर विघ्न बाघा, दु:ख, क्लेशों और कठिनाइयों पर विजय प्राप्त करने वाली गुप्त
मनः शक्ति जाग्रत करता है ।
आत्मा
की शक्ति से देदीप्यमान आशावादी उम्मीद का पल्ला पकड़े प्रलोभनों को रौंदता हुआ अग्रसर
होता है । वह पग-पग पर विचलित नहीं होता, उसे कोई पराजित नहीं कर सकता, संसार की कोई
शक्ति उसे नहीं दबा सकती, क्योंकि सब शक्तियों का विकास करने वाली 'आशा' की शक्ति सदैव
उसकी आत्मा को तेजोमय करती है ।
संसार
के कितने ही व्यक्ति अपने जीवन को उचित, श्रेष्ठ और श्रेय के मार्ग पर नहीं लगाते ।
वे किसी एक उद्देश्य को स्थिर नहीं करते, न वे अपने-अपने मानसिक संकल्प को इतना दृढ़
ही बनाते हैं कि निज प्रयत्नों में सफल हो सकें । सोचते कुछ और हैं, काम किसी एक पदार्थ
के लिए करते हैं, आशा किसी दूसरे की ही करते हैं। करील के वृक्ष बोकर आम खाने की अभिलाषा
रखते हैं। हाथ में लिए हुए कार्य के विपरीत मानसिक भाव रखने से हमें अपनी निर्दिष्ट
वस्तु कदापि प्राप्त नहीं हो सकती । बल्कि हम इच्छित वस्तु से और भी दूर जा पड़ते हैं
। तभी तो नाकामयाबी लाचारी. तंगी, क्षुद्रता प्राप्त होती है। अपने को भाग्य हीन समझ
लेना, बेबसी की बातों को लेकर झींकना और दूसरों की इष्ट सिद्धि पर कुढ़ना हमें सफलता
से दूर ले जाता है । विरोधी भाव रखने से मनुष्य उन्नत अवस्था में कदापि नहीं पहुँच
सकता । संसार के साथ अविरोधी रहो, क्यों कि विरोध संसार की उत्कृष्ट वस्तुओं को अपने
निकट नहीं आने देता और अविरोध उत्कृष्ट वस्तुओं का आकर्षक बिन्दु है।
उपरोक्त
प्रवचन पंडित आचार्य श्रीराम शर्मा द्वारा लिखित पुस्तक मानसिक संतुलन➖ पृष्ठ-21 से लिया गया
है।
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