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जहां पांडवों ने बिताया था अज्ञातवास — पौराणिक कथाओं और इतिहास के साक्षी ‘हाथी भाटा’ की अनकही दास्तान
प्राकृतिक बावड़ी और लोकमान्यता
मंदिर के निकट ही एक प्राकृतिक बावड़ी स्थित है, जिसमें सालभर पानी भरा रहता है। स्थानीय मान्यता है कि पांडवों ने अपने वनवास के दौरान यहीं विश्राम किया था और इसी स्थान पर भोजन ग्रहण किया था। पत्थर पर उकेरी गई थालियाँ इसी कथा की साक्षी मानी जाती हैं। इतिहासकारों का कहना है कि इस क्षेत्र की चट्टानों में बनी आकृतियाँ और विराटकालीन शिल्पकला से इसका संबंध संभवतः महाभारत युग तक जा सकता है।
एक ही पत्थर से तराशा गया विशाल हाथी
राजस्थान की शुष्क धरती पर स्थित टोंक का यह स्मारक स्थापत्य कौशल की एक अनोखी मिसाल है। एक ही शिला को काटकर निर्मित यह हाथी आदमकद आकार का है और अपने अनुपात व विस्तार में वास्तविक हाथी जैसा प्रतीत होता है। दूर से देखने पर यह जीवंत आकृति जैसी अनुभूति देता है। इतिहासकार इसे राजस्थान के सबसे अद्वितीय मोनोलिथिक (Monolithic) स्मारकों में गिनते हैं।
पांडवों की कथा — जब ‘पांचाली’ ने गणेश पूजन के बाद अन्न ग्रहण किया
स्थानीय परंपरा में एक रोचक कथा प्रचलित है। कहा जाता है कि वनवास के दौरान जब पांडव इस क्षेत्र में आए, तो द्रौपदी (पांचाली) ने गणेश पूजन के बिना भोजन करने से मना कर दिया। ऐसे में पांडवों ने एक ही रात में चट्टान को तराशकर गणपति स्वरूप यह विशाल हाथी निर्मित कर दिया। कहा जाता है कि इस मूर्ति में उन्होंने प्राण प्रतिष्ठा भी की, जिसके बाद यह हाथी जीवंत होकर आस-पास के क्षेत्र की रक्षा करने लगा। माना जाता है कि इसकी घंटियों की गूंज से गांववाले भयभीत होने लगे और अंततः यह हाथी यहीं स्थिर हो गया।
ऐतिहासिक रहस्य और काल निर्धारण
हाथी भाटा का सटीक काल निर्धारण आज भी इतिहासकारों के लिए चुनौती बना हुआ है। कुछ मान्यताओं के अनुसार, इसका निर्माण संवत् 1200 के आसपास रामनाथ नामक शिल्पकार द्वारा कराया गया था। हालांकि, इसकी बनावट और शैली से यह प्रतीत होता है कि इसकी मूल संरचना प्रागैतिहासिक या लौह युगीन काल से संबंधित हो सकती है, जिसे समय-समय पर तराशा और निखारा गया।
विराट नगर से जुड़ी कड़ी
इतिहासकारों के अनुसार, टोंक का यह क्षेत्र कभी विराट प्रदेश का हिस्सा था। जयपुर जिले की सीमा पर स्थित विराट नगर (बैराठ), मत्स्यराज की प्राचीन राजधानी मानी जाती है, जहां पांडवों ने अपना अज्ञातवास व्यतीत किया था। यहाँ की पुरातात्विक संपदा और चट्टानों पर उकेरी आकृतियाँ, हाथी भाटा से मिलती-जुलती प्रतीत होती हैं। यही कारण है कि विद्वान इसे विराटकालीन संस्कृति से जोड़कर देखते हैं।
आज का हाथी भाटा — इतिहास और पर्यटन का संगम
आज हाथी भाटा, टोंक के प्रमुख ऐतिहासिक-धार्मिक पर्यटन स्थलों में गिना जाता है। जयपुर, कोटा और सवाई माधोपुर से आने वाले यात्री इसे देखने अवश्य पहुँचते हैं। यहाँ की शांति, विशालता और पौराणिक आभा दर्शकों के मन में अतीत का जीवंत अनुभव छोड़ जाती है।
हाथी भाटा सिर्फ पत्थर की मूर्ति नहीं, बल्कि राजस्थान की धरोहर, भारतीय शिल्पकला की पराकाष्ठा और पांडव युग की स्मृति का अमर प्रतीक है। यह वह स्थान है जहां इतिहास, आस्था और प्रकृति एक साथ खड़े हैं — जैसे समय स्वयं इस पत्थर में स्थिर हो गया हो।
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