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प्रगति का चिह्न है परिवर्तन—पं श्रीराम शर्मा आचार्य

स्थिरता जड़ता का चिन्ह है और परिवर्तन प्रगति का। स्थिरता में नीरसता एवं निष्क्रियता है। किन्तु परिवर्तन नये चिन्तन और नये अनुभव का पथ प्रशस्त करता रहता है। जीवन प्रगतिशील है, अस्तु इसमें परिवर्तन आवश्यक होता है और अनिवार्य भी।
प्रगतिशील परिवर्तन से डरते नहीं, उसका समर्थन करते हैं और स्वागत भी। आकाश में सभी ग्रह गोलक गतिशील हैं। इससे उनका चुम्बकत्व स्थिर रहता और उसके सहारे उनका मध्यवर्ती सहकार बना रहता है। यदि वे निक्रिय रहे होते, तो अपनी ऊर्जा गँवा बैठते। जो आगे नहीं बढ़ता वह स्थिर भी नहीं रह सकता। स्थिरता पर संकट आते ही, विकल्प विनाश ही रह जाता है। अस्तु जीवन को गतिशील रहना पड़ता है। जो निर्जीव है- वह भी गतिहीन नहीं है।
युग बदलते हैं। परिवर्तन क्रम में आशा और निराशा के अवसर आते हैं और चले जाते हैं। रात्रि और दिन, स्वप्न और जागृति, जीवन और मरण, शीत और ग्रीष्म, हानि और लाभ, संयोग और वियोग का अनुभव लगता तो परस्पर विरोधी हैं, अन्तत: वे एक दूसरे के साथ गुँथे रहते हैं और दुहरे रसास्वादन का आनन्द देते हैं। ऋण और धन धाराओं का मिलन ही बिजली की सामथ्र्य भरे प्रभाव को जन्म देता है।
प्रगतिशील परिवर्तन से डरते नहीं, उसका समर्थन करते हैं और स्वागत भी। आकाश में सभी ग्रह गोलक गतिशील हैं। इससे उनका चुम्बकत्व स्थिर रहता और उसके सहारे उनका मध्यवर्ती सहकार बना रहता है। यदि वे निक्रिय रहे होते, तो अपनी ऊर्जा गँवा बैठते। जो आगे नहीं बढ़ता वह स्थिर भी नहीं रह सकता। स्थिरता पर संकट आते ही, विकल्प विनाश ही रह जाता है। अस्तु जीवन को गतिशील रहना पड़ता है। जो निर्जीव है- वह भी गतिहीन नहीं है।
युग बदलते हैं। परिवर्तन क्रम में आशा और निराशा के अवसर आते हैं और चले जाते हैं। रात्रि और दिन, स्वप्न और जागृति, जीवन और मरण, शीत और ग्रीष्म, हानि और लाभ, संयोग और वियोग का अनुभव लगता तो परस्पर विरोधी हैं, अन्तत: वे एक दूसरे के साथ गुँथे रहते हैं और दुहरे रसास्वादन का आनन्द देते हैं। ऋण और धन धाराओं का मिलन ही बिजली की सामथ्र्य भरे प्रभाव को जन्म देता है।
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