Advertisement
ध्यानयोग का आधार और स्वरूप

ध्यानयोग की चर्चाएँ इन दिनों बहुत होती हैं। कितने ही सम्प्रदाय तो अपनी मूलभूत पूँजी और कार्य पद्धति ध्यान को ही मानते हैं। उनका कहना है कि इसी पद्धति को अपनाने से ईश्वर दर्शन या आत्म साक्षात्कार हो सकता है। कितने ही अतीन्द्रिय शक्तियों के उद्भव और कुंडलिनी जागरण प्रयोजनों के लिए इसे आवश्यक मानते हैं। तो भी ध्यान प्रक्रिया का रूप इतना बहुमुखी है कि एक जिज्ञासु के लिए यह जानना कठिन हो जाता है कि एक ही उद्देश्य की पूर्ति के लिए जब अनेक मार्ग बताये जा रहे हैं, तो इनमें से किसे अपनाया जाय? एक को अपना लेने के बाद भी यह संदेह बना रहता है कि अपनाई गई प्रक्रिया की तुलना में यदि अन्य प्रचलित पद्धतियां श्रेष्ठ रहीं तो अपना चुनाव तो घाटे का सौदा रहेगा।
यह ऊहापोह बना रहने से प्राय: साधक असमंजस की स्थिति में पड़े रहते हैं। पूरी तरह मन नहीं लगता या उसका कोई परिणाम सामने नहीं आता तो दूसरी विधा अपनानी पड़ती है। उससे भी कुछ दिनों में ऊब आने लगती है और कुछ दिन में बिना रसानुभूति के लकीर पिटना भी बन्द हो जाता है। जिनका दृढ़ संकल्प के साथ ध्यानयोग लम्बे समय तक चलता रहे, ऐसे कुछ ही लोग दीख पड़ते हैं। श्रद्धा के अभाव में आध्यात्मिक क्षेत्र में बढ़ाये हुए कदम लक्ष्य तक पहुँच ही नहीं पाते।
कदम को बढ़ाने से पूर्व अच्छा यह है कि इस विज्ञान का स्वरूप एवं आधार समझ लेने का प्रयत्न किया जाय।
जानने योग्य तथ्य है कि चेतना के साथ जुड़ी हुई प्राण ऊर्जा जहाँ शरीर की ज्ञात-अज्ञात, प्रयत्न साध्य एवं स्वसंचालित गति विधियों का सूत्र संचालन करती है और जीवित रहने के निमित्त कारणों को गतिशील रखती है, वहाँ उसकी एक और भी विशेषता है कि वह मस्तिष्कीय घटकों के सचेतन एवं अचेतन पक्षों को भी गतिशीलता प्रदान करती है। कल्पना, आकाँक्षा, विचारणा एवं निर्धारण की बौद्धिक क्षमता का सूत्र संचालन भी चेतना की जीवनी शक्ति द्वारा ही होता है।
क्रमश: जारी
यह ऊहापोह बना रहने से प्राय: साधक असमंजस की स्थिति में पड़े रहते हैं। पूरी तरह मन नहीं लगता या उसका कोई परिणाम सामने नहीं आता तो दूसरी विधा अपनानी पड़ती है। उससे भी कुछ दिनों में ऊब आने लगती है और कुछ दिन में बिना रसानुभूति के लकीर पिटना भी बन्द हो जाता है। जिनका दृढ़ संकल्प के साथ ध्यानयोग लम्बे समय तक चलता रहे, ऐसे कुछ ही लोग दीख पड़ते हैं। श्रद्धा के अभाव में आध्यात्मिक क्षेत्र में बढ़ाये हुए कदम लक्ष्य तक पहुँच ही नहीं पाते।
कदम को बढ़ाने से पूर्व अच्छा यह है कि इस विज्ञान का स्वरूप एवं आधार समझ लेने का प्रयत्न किया जाय।
जानने योग्य तथ्य है कि चेतना के साथ जुड़ी हुई प्राण ऊर्जा जहाँ शरीर की ज्ञात-अज्ञात, प्रयत्न साध्य एवं स्वसंचालित गति विधियों का सूत्र संचालन करती है और जीवित रहने के निमित्त कारणों को गतिशील रखती है, वहाँ उसकी एक और भी विशेषता है कि वह मस्तिष्कीय घटकों के सचेतन एवं अचेतन पक्षों को भी गतिशीलता प्रदान करती है। कल्पना, आकाँक्षा, विचारणा एवं निर्धारण की बौद्धिक क्षमता का सूत्र संचालन भी चेतना की जीवनी शक्ति द्वारा ही होता है।
क्रमश: जारी
ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
Advertisement
Advertisement
गॉसिप्स
Advertisement
Traffic
Features
