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Lockdown : होली न होती तो बुंदेलखंड का क्या हाल होता!

झांसी/छतरपुर। कोरोनावायरस के संक्रमण की हर तरफ दहशत है, लगातार मरीजों की संख्या और मौत का आंकड़ा बढ़ता जा रहा है, मगर बुंदेलखंड से एक सुखद खबर आ रही है, क्योंकि होली के चलते यहां से पलायन करने वालों में से आधे से ज्यादा लोग अपने अपने गांव लौट चुके थे और अब जो लौट रहे हैं, उनकी संख्या काफी कम है। सवाल उठ रहा है कि अगर होली न होती और कटाई का मौसम न होता तो बुंदेलखंड के हालात क्या होते!
बुंदेलखंड की पहचान सूखा, भूख, गरीबी, बेरोजगारी और पलायन को लेकर है। ऐसा इसलिए, क्योंकि इस इलाके की लगभग 20 से 25 फीसद आबादी रोजगार की तलाश में अपने गांव छोड़ जाती है। यहां के लोग दिल्ली, नोएडा, गाजियाबाद, गुरुग्राम के अलावा जम्मू-कश्मीर, पंजाब, हरियाणा, गुजरात आदि स्थानों पर मजदूरी और रोजगार की तलाश में जाते हैं।
जानकारों की मानें तो पलायन करने वालों की संख्या का आंकड़ा चौंकाने वाला है, क्योंकि उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में फैले इस क्षेत्र में सात लोकसभा क्षेत्र आते हैं और औसत तौर पर एक लोकसभा क्षेत्र में औसतन 16 लाख मतदाता होते हैं, अगर मतदाताओं का ही आंकड़ा जोड़ लिया जाए तो यह लगभग सवा करोड़ होता है और अगर कुल आबादी की गणना करें तो यह दो से ढाई करोड़ के आसपास पहुंचती है। इन स्थितियों में पलायन करने वाले मजदूरों की संख्या को 20 फीसदी ही माना जाए तो यह आंकड़ा 20 से 25 लाख पहुंच जाता है। इनके साथ जाने वाले किशोर और बच्चे अलग हैं।
बुंदेलखंड के सामाजिक कार्यकर्ता मनोज बाबू चौबे ने आईएएनएस को बताया है, "इस इलाके में लोगों के रिश्ते काफी प्रगाढ़ होते हैं और यही कारण है कि त्योहार का मौसम हो और शादी विवाह हो तो लोग अपने घरों को लौटना नहीं भूलते और यही बात कोरोनावायरस जैसी बीमारी के समय इस क्षेत्र के लिए सुखद साबित हो रही है।"
चौबे अपने अनुभव के आधार पर बताते हैं कि होली और फसल की कटाई का समय एक साथ होने के कारण रोजगार की तलाश में पलायन करने वालों में से आधी से अधिक आबादी फरवरी के अंत और मार्च माह की शुरुआत में ही लौट चुकी थी, इसलिए जो लोग अभी लौट रहे हैं, उनकी संख्या काफी कम है। अगर होली और फसल की कटाई का समय न होता तो इस इलाके के ज्यादातर लोग दूसरे राज्यों में फंसे होते, तब स्थिति कितनी दारुण होती, इसकी कल्पना नहीं की जा सकती।"
कोरोनावायरस के कारण हुई महाबंदी के बाद बुंदेलखंड में हजारों लोग लौट रहे हैं। इस इलाके का बड़ा केंद्र है झांसी जहां से लोग ललितपुर, उरई, हमीरपुर, बांदा, छतरपुर, टीकमगढ़, पन्ना, सागर आदि इलाकों के लिए आगे बढ़ते हैं। यह लोग जैसे तैसे झांसी तक पहुंच गए और अब अपने गांव लौट रहे हैं। तमाम परेशानियों के बावजूद यह लोग किसी भी तरह अपने गांव तक पहुंचना चाह रहे हैं।
प्रशासन ने कई स्थानों पर बस, ट्रक, डंपर आदि की व्यवस्था की है ताकि लोग अपने गांव तक पहुंच जाएं, इसके पहले उनका स्वास्थ्य परीक्षण किया जा रहा है।
सागर संभाग के संभाग आयुक्त अजय गंगवार ने आईएएनएस को बताया है, "सेक्टर बनाए गए हैं और आने वाले मजदूरों का स्वास्थ्य परीक्षण कर उन्हें आइसोलेट किया जा रहा है। अभी तक ऐसे मामले सामने नहीं आए हैं, जो संक्रमित हो या संक्रमण की आशंका नजर आ रही हो।"
बुंदेलखंड की पहचान सूखा, भूख, गरीबी, बेरोजगारी और पलायन को लेकर है। ऐसा इसलिए, क्योंकि इस इलाके की लगभग 20 से 25 फीसद आबादी रोजगार की तलाश में अपने गांव छोड़ जाती है। यहां के लोग दिल्ली, नोएडा, गाजियाबाद, गुरुग्राम के अलावा जम्मू-कश्मीर, पंजाब, हरियाणा, गुजरात आदि स्थानों पर मजदूरी और रोजगार की तलाश में जाते हैं।
जानकारों की मानें तो पलायन करने वालों की संख्या का आंकड़ा चौंकाने वाला है, क्योंकि उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में फैले इस क्षेत्र में सात लोकसभा क्षेत्र आते हैं और औसत तौर पर एक लोकसभा क्षेत्र में औसतन 16 लाख मतदाता होते हैं, अगर मतदाताओं का ही आंकड़ा जोड़ लिया जाए तो यह लगभग सवा करोड़ होता है और अगर कुल आबादी की गणना करें तो यह दो से ढाई करोड़ के आसपास पहुंचती है। इन स्थितियों में पलायन करने वाले मजदूरों की संख्या को 20 फीसदी ही माना जाए तो यह आंकड़ा 20 से 25 लाख पहुंच जाता है। इनके साथ जाने वाले किशोर और बच्चे अलग हैं।
बुंदेलखंड के सामाजिक कार्यकर्ता मनोज बाबू चौबे ने आईएएनएस को बताया है, "इस इलाके में लोगों के रिश्ते काफी प्रगाढ़ होते हैं और यही कारण है कि त्योहार का मौसम हो और शादी विवाह हो तो लोग अपने घरों को लौटना नहीं भूलते और यही बात कोरोनावायरस जैसी बीमारी के समय इस क्षेत्र के लिए सुखद साबित हो रही है।"
चौबे अपने अनुभव के आधार पर बताते हैं कि होली और फसल की कटाई का समय एक साथ होने के कारण रोजगार की तलाश में पलायन करने वालों में से आधी से अधिक आबादी फरवरी के अंत और मार्च माह की शुरुआत में ही लौट चुकी थी, इसलिए जो लोग अभी लौट रहे हैं, उनकी संख्या काफी कम है। अगर होली और फसल की कटाई का समय न होता तो इस इलाके के ज्यादातर लोग दूसरे राज्यों में फंसे होते, तब स्थिति कितनी दारुण होती, इसकी कल्पना नहीं की जा सकती।"
कोरोनावायरस के कारण हुई महाबंदी के बाद बुंदेलखंड में हजारों लोग लौट रहे हैं। इस इलाके का बड़ा केंद्र है झांसी जहां से लोग ललितपुर, उरई, हमीरपुर, बांदा, छतरपुर, टीकमगढ़, पन्ना, सागर आदि इलाकों के लिए आगे बढ़ते हैं। यह लोग जैसे तैसे झांसी तक पहुंच गए और अब अपने गांव लौट रहे हैं। तमाम परेशानियों के बावजूद यह लोग किसी भी तरह अपने गांव तक पहुंचना चाह रहे हैं।
प्रशासन ने कई स्थानों पर बस, ट्रक, डंपर आदि की व्यवस्था की है ताकि लोग अपने गांव तक पहुंच जाएं, इसके पहले उनका स्वास्थ्य परीक्षण किया जा रहा है।
सागर संभाग के संभाग आयुक्त अजय गंगवार ने आईएएनएस को बताया है, "सेक्टर बनाए गए हैं और आने वाले मजदूरों का स्वास्थ्य परीक्षण कर उन्हें आइसोलेट किया जा रहा है। अभी तक ऐसे मामले सामने नहीं आए हैं, जो संक्रमित हो या संक्रमण की आशंका नजर आ रही हो।"
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