India mediation is Russia-Ukraine consent or compulsion-m.khaskhabar.com
×
khaskhabar
Nov 15, 2024 5:41 am
Location
Advertisement

भारत की मध्यस्थता रूस- यूक्रेन की रजामंदी या मजबूरी

khaskhabar.com : मंगलवार, 10 सितम्बर 2024 5:52 PM (IST)
भारत की मध्यस्थता रूस- यूक्रेन की रजामंदी या मजबूरी
प्रधानमंत्री मोदी की दो दिवसीय पोलैंड यूक्रेन यात्रा ने पूरी दुनिया के कान खड़े कर दिए हैं। जब संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव सहित अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया तथा यूरोप के 22 देश रूस के सामने युद्ध विराम की गुहार लगाते रहे पर रूस ने किसी की एक ना सुनीं, ऐसे में भारत के प्रधानमंत्री की यह यूक्रेन यात्रा रूस और यूक्रेन के लिए इसीलिए भी बहुत मायने रखती है कि भारत के प्रधानमंत्री ने पोलैंड से यूक्रेन की यात्रा 10 घंटे रेल में सफर करके यूक्रेन के राष्ट्रपति से मिलने कीव पहुंचे थे।

रूस ने अपनी पुरानी मित्रता का लिहाज करते हुए जब प्रधानमंत्री मोदी यूक्रेन में थे तब आक्रमण तथा युद्ध एक दिन के लिए स्थगित कर दिया गया था। हालांकि यूक्रेन के राष्ट्रपति बहुत उत्साह, गर्मजोशी से मिलते नहीं दिखाई दिए पर मोदी के शांति प्रस्ताव पर उन्होंने अपनी सहमति जताई थी। यूक्रेनी राष्ट्रपति को शायद यह उम्मीद नहीं है कि भारत की मध्यस्थता रूस को आक्रमण करने से रोक पाएगी पर भारत के प्रधानमंत्री ने यात्रा के बाद पुतिन तथा अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाईडन से अलग-अलग दूरभाष पर चर्चा कर रूस यूक्रेन युद्ध रोकने संबंधी वार्ता भी की थी, इसके पश्चात ही पूरे विश्व के अलग-अलग नेताओं ने अपनी प्रतिक्रिया जाहिर की है।
इटली की प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी ने प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ करते हुए कहा कि भारत ही रूस यूक्रेन युद्ध को रुकवा सकने में सक्षम होगा। इंग्लैंड, फ्रांस, कनाडा तथा ऑस्ट्रेलिया देश भी भारत की तरफ आशावादी दृष्टिकोण से रूस यूक्रेन युद्ध को रोकने और मध्यस्थता करने की राह देख रहे हैं। यह अलग बात है कि अमेरिका के एंथोनी ब्लिंकन ने यूक्रेन को इस युद्ध के दौरान 270 करोड़ मिलियन डॉलर की मदद की घोषणा की है इसके अलावा अन्य यूरोपीय देश भी युद्ध की शुरुआत से यूक्रेन की युद्ध में सामरिक तथा आर्थिक मदद करते आ रहे हैं।
यूक्रेन इस युद्ध में अपने हजारों सैनिक और नागरिकों की बलि चढ़ा चुका है और आर्थिक रूप से दिवालिया भी हो गया है। रूस आर्थिक रूप से तो शक्तिशाली है पर उसके पेट्रोलियम पदार्थ एवं शस्त्रों का निर्यात पूरी तरह से बंद हो गया है रूस को भी भारी जान माल का नुकसान उठाना पड़ रहा है। वर्तमान में रूस यूक्रेन युद्ध की खबरें अब गर्म और ताजा खबरें नहीं रह गई हैं, क्योकि दैनिक अखबार, सोशल मीडिया और प्रिंट मीडिया भी इसे सामान्य खबर की तरह अपने चैनलों में प्रसारित कर रहे हैं। रूस ने भी भारी संख्या में अपने नागरिकों सैनिकों को खोया है।
रूस ने यूक्रेन से यह अनुमान लगा कर युद्ध शुरू किया था कि रूस 10 से 15 दिनों में यूक्रेन को नष्ट-ध्वस्त करके उस पर कब्जा कर लेगा पर यूक्रेनी राष्ट्रपति, वहां की जनता तथा सैनिकों के हौसले से तथा अमेरिका तथा यूरोपीय देशों की मदद से अब युद्ध हजार दिनों की तरफ बढ़ रहा है। रूस तथा यूक्रेन के लिए यह युद्ध अब प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया है और युद्ध रोकने के लिए दोनों की अलग-अलग अपनी मांगे और शर्ते हैं। इसके अलावा युद्ध रोकने के लिए एक दूसरे के सामने झुकना पसंद नहीं कर रहे हैं। इस युद्ध विराम के लिए पहले चीन तथा ब्राजील ने पहल की थी पर उसका कोई नतीजा अभी तक कुछ दिखाई नहीं दिया है तुरकिए ने भी अपना प्रयास दिखाया था। भारत की तुलना में चीन के संबंध रूस से उतने प्रगाढ़ नहीं है जितने प्रगाढ़ भारत से स्वतंत्रता की प्राप्ति से बाद अब तक रहे हैं।
भारत के प्रधानमंत्री सर्वमान्य रूप से रूस तथा यूक्रेन से बराबरी से मित्रता निभाते आ रहे हैं। भारत ने रूस से कच्चा तेल सस्ते में इस युद्ध के दौरान ही खरीदा है और उसका संयुक्त राष्ट्र संघ में निर्गुण रहकर मौन समर्थन दिया है। राष्ट्रपति पुतिन प्रधानमंत्री मोदी को अपना सबसे नजदीकी एवं अभिन्न मित्र मानते हैं, भारत ने भी अमेरिका को दरकिनार रूस का साथ दिया है और इस वजह से अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाईडेन ने भारत पर बलपूर्वक दबाव उत्पन्न किया था पर भारत दबाव के सामने कभी झुका नहीं, क्योंकि भारत चीन और भारत-पाकिस्तान युद्ध में रूस ने भारत की एक तरफ़ा मदद की जिसकी वजह से भारत अभी भी रूस को अपना हितैषी मानता आ रहा है रही चीन और पाकिस्तान की बात तो पाकिस्तान के विरोध और समर्थन से किसी भी देश को कोई फर्क पड़ता नजर नहीं आता क्योंकि पाकिस्तान दिवालिया हो चुका है अपनी आर्थिक तंगी से खुद जूझ रहा है।
चीन और रूस की मित्रता की तुलना भारत और रूस के मित्रता से नहीं की जा सकती है क्योंकि भारत और रूस सामरिक आर्थिक तथा व्यापारिक रूप से एक दूसरे से काफी नजदीक आ चुके हैं। यह बात अलग है कि इजरायल पलेस्टाइन युद्ध में रूस चीन पाकिस्तान और खाडी के देश एक साथ फिलिस्तीन के साथ हो खड़े चुके हैं पर फिलिस्तीन इजरायल युद्ध से यूक्रेन रूस के युद्ध की बात बिल्कुल जुदा है। रूस पर आर्थिक प्रतिबंध में अमेरिका तथा यूरोपीय देशों का बड़ा हाथ रहा है जिसके कारण रूस को काफी आर्थिक तथा सामरिक नुकसान झेलना पड़ा है। भारत की रूस यूक्रेन युद्ध में मध्यस्थता अब पुतिन जेलेन्स्की की रजामंदी या उनकी इतने बड़े आर्थिक तथा सामरिक नुकसान के बाद मजबूरी भी हो सकती है।
इसके अलावा फ्रांस, अमेरिका, ब्रिटेन ऑस्ट्रेलिया युद्ध विराम के अंदरूनी तौर पर इच्छुक हैं या नहीं इसके समीकरण को समझना कठिन है क्योंकि अमेरिका ब्रिटेन तथा फ्रांस सामरिक अस्त्र-शस्त्र बेचने वाले देश हैं युद्ध चलता रहेगा तो उनके अस्त्र-शस्त्रों की बिक्री भी जारी रहेगी, ये देश पूर्व में यदि चाहते तो युद्ध विराम हो सकता था पर उनकी चाहत युद्ध रुकवाने की है ऐसा स्पष्ट रूप से समझ में नहीं आता। क्योंकि अमेरिका सदैव वैश्विक स्तर पर छोटे-छोटे देशों को आपस में लड़वाने भिडवानें की रणनीति में सदैव पारंगत रहा है तथा और रूस यूक्रेन युद्ध रुकने से उसकी शक्ति तथा उसके निर्यात पर बड़ा फर्क पड सकता है।
दूसरी तरफ अमेरिका में 5 नवंबर 24 को राष्ट्रपति के चुनाव होने जा रहे हैं उसमें रिपब्लिकन पार्टी के डोनाल्ड ट्रंप तथा डेमोक्रेट पार्टी की कमला हैरिस चुनाव की प्रत्याशी हैं यदि कमला हैरिस चुनाव जीतती है तो युद्ध के रुकने की संभावना कम दिखाई देती है इसके अलावा यदि डोनाल्ड ट्रंप जीतते हैं तो उन्होंने जैसा की पहले से ही घोषणा करके रखी है कि वह विश्व युद्ध नहीं होने देना चाहते ऐसे में अमेरिका के राष्ट्रपति के चुनाव के परिणामों का भी रूस यूक्रेन युद्ध पर प्रभाव पड़ सकता है। अब भारत की रूस यूक्रेन युद्ध में मध्यस्थ की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण तथा वैश्विक शांति को स्थापित करने में वैश्विक स्तर पर अहम होगी।

ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे

Advertisement
Khaskhabar.com Facebook Page:
Advertisement
Advertisement