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Jun 3, 2023 11:51 pm
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फिल्म समीक्षा: 'जेल': बुलंद महत्वाकांक्षाओं वाली फिल्म, नहीं दिखा पाई कमाल

khaskhabar.com : शुक्रवार, 10 दिसम्बर 2021 5:44 PM (IST)
फिल्म समीक्षा: 'जेल': बुलंद महत्वाकांक्षाओं वाली फिल्म, नहीं दिखा पाई कमाल
फिल्म: जेल।
कलाकार: जी.वी. प्रकाश, अबरनाथी, नंदन राम, पसंगा पांडी, राधिका सरथकुमार और रवि मारिया।
अवधि: 135 मिनट।
निर्देशक: वसंतबालन।

निर्देशक वसंतबालन ने 'जेल' में दयनीय जीवन को दिखाने की कोशिश की हैं कि झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले गरीब लोग, जो एक शहर के निर्माण में सक्रिय भूमिका निभाते हैं, उनको स्वार्थी और कृतघ्न समाज का नेतृत्व करने के लिए मजबूर किया जाता है।

रॉकी (नंदन राम) और कर्ण (जीवी प्रकाश) दो दोस्त हैं जो शहर से 30 किमी दूर सरकार के सबसे बड़े पुनर्वास क्षेत्र कावेरी नगर में रहते हैं। रॉकी ड्रग्स बेचता है और कर्ण उसका साथी है। ड्रग्स बेचने के कारोबार में रॉकी का सबसे बड़ा प्रतिद्वंद्वी माणिक है, जो कावेरी नगर में भी रहता है, लेकिन उसे स्थानीय राजनेताओं का समर्थन प्राप्त है।

दो गिरोहों में तीन चीजें समान हैं कि वे दोनों ड्रग्स बेचते हैं, दोनों कावेरी नगर में रहते हैं, और इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि दोनों क्षेत्र के पुलिस निरीक्षक पेरुमल (रवि मारिया द्वारा अभिनीत), एक भ्रष्ट और क्रूर लेकिन शक्तिशाली व्यक्ति द्वारा संचालित हैं।

रॉकी और कर्ण का करीबी दोस्त, कलाई (पसंगा पांडी), एक किशोर गृह में समय बिताने के बाद, कावेरी नगर लौटता है। मासूम लड़का, जो पढ़ाई में अच्छा है, खुद को ऐसी स्थिति में पाता है जहां वह अपनी शिक्षा नहीं कर पा रहा था।

इन परिस्थितियों में एक दिन दो प्रतिद्वंद्वी गिरोहों के बीच ड्रग्स बेचने को लेकर लड़ाई छिड़ जाती है। वे थाने में जाते है। वहीं राजनेता माणिक के गिरोह को बाहर निकाल लेते है।

पेरुमल रॉकी को जाने से पहले, वह उसे एक गुप्त कार्य देता है। रॉकी टास्क स्वीकार करता है और तीन दिनों के लिए लापता हो जाता है। चौथे दिन जब उसके दोस्त उसे ढूंढते हैं, तो वह अपने जीवन के लिए भागता हुआ दिखाई देता है। रॉकी किससे भाग रहा है और क्यों? यह फिल्म को आगे बढ़ाता है।

क्या 'जेल' आपको जवाब देती है?

फिल्म इस बात को उजागर करती है कि कैसे प्रशासन की पुनर्वास योजनाओं के तहत झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले गरीब लोगों को उनके घरों से बाहर निकाल दिया जाता है। इसमें यह बताने का प्रयास किया गया है कि कैसे शहरों में रहने वाले इन गरीब लोगों को शहरों से 30-40 किमी दूर स्थानों पर जाने के लिए मजबूर किया जाता है, जिससे उन्हें अपने पेशे को आगे बढ़ाने के लिए बहुत कम गुंजाइश मिलती है। यह इस बात पर जोर देने की उम्मीद करता है कि कैसे उन्हें जीवित रहने के लिए अपराध का जीवन अपनाने के लिए प्रेरित किया जाता है और फिर उन्हें कैसे संदेह की नजर से देखा जाता है।

ये फिल्म नेक इरादे के साथ बनाई गई हैं। अफसोस की बात है कि ये संदेश जो फिल्म देने का इरादा रखती है, वो ²ढ़ता से सामने नहीं आया हैं। अंत में जो सामने आता है, वह सिर्फ दो प्रतिद्वंद्वी गिरोहों के बीच लड़ाई के बारे में एक कहानी के रूप में सामने आता है। (आईएएनएस)

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