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चीन के 15%रेस्तरां में इस्तेमाल होता है गटर से निकाला गया तेल, आखिर कैसे, यहां पढ़ें

पंकज श्रीवास्तव
चीन में विविध प्रकार के व्यंजन बनते हैं, खाने पीने में हर प्रांत की अपनी विशेषता और अपना व्यंजन है जिसे चीनी लोग बड़े चाव के साथ खाते हैं। एक तरफ़ उत्तरी और सुदूर उत्तरी चीन के व्यंजन हैं जिसमें तेल मसाले कम डाले जाते हैं और वो खाना उबला हुआ होता है तो वहीं दक्षिणी और तटीय चीन के व्यंजनों में मसाले भी बहुत पड़ते हैं और तेल भी बहुत मात्रा में डाला जाता है।
चीनी व्यंजनों में तले भुने खाने का अपना महत्व है। पिछले 3 दशकों में चीन में जैसे जैसे आर्थिक तरक्की आई है चीनियों के व्यंजनों में तेल की मात्रा भी बढ़ी है, अगर हम बात करें कि चीन में लोग खाने में कौन सा तेल सबसे ज्यादा पसंद करते हैं तो इसका जवाब है कि अलग अलग प्रांतों में अलग अलग तेल का इस्तेमाल खाने में किया जाता है। पूर्वोत्तर चीन के चीलिन, हेइलोंगचियांग और लियाओनिंग प्रांत में सोयाबीन का तेल बहुतायत में खाया जाता है, सुदूर दक्षिण के क्वांगतुंग, फ़ूइचांग और क्वांगशी च्यांग स्वायत्त प्रांत में मूंगफली का तेल खाया जाता है और बाकी चीन के च्यांगसू, चच्यांग, आनहुई, च्यांगशी, हूनान, सछ्वान, कुईचो, युन्नान, शानसी, कानसू, छिंगहाई और शिनच्यांग प्रांतो में कोनोला तेल खाया जाता है। चीन में जैसे जैसे शहरीकरण बढ़ता गया वैसे ही चीन में हर तरह का तेल खाने का प्रचलन भी बढ़ा, इन तेलों में राइस बार्न तेल, सूरजमुखी के बीज का तेल भी प्रमुखता से इस्तेमाल किया जाता है।
चीन में तेल की मांग बढ़ने के साथ साथ हर तरह का तेल बाज़ार में उपलब्ध है, इस समय चीन में 44% लोग सोयाबीन का तेल खाते हैं, 24% लोग कोनोला तेल, 18% लोग पाम तेल, और 9% लोग मूंगफली का तेल खाते हैं इसके अलावा बचे 5% लोग कपास के बीज का तेल, सूरजमुखी का तेल, तिल का तेल, कैमेलिया का तेल और जैतून का तेल इस्तेमाल करते हैं। समय के साथ इन तेलों का इस्तेमाल करने वाले लोगों की संख्या में बदलाव आने लगा।
चीन में तीन दशक पहले हालात ऐसे नहीं थे, ग्रामीण लोग या तो सुअर की चर्बी पिघलाकर तेल के रूप में इस्तेमाल करते थे या फिर कोनोला के बीजों को अपरिष्कृत तरीके से कूटकर निकाला गया तेल इस्तेमाल करते थे। लेकिन पिछले तीन दशकों में चीन में तेल की मांग जिस तेज़ी से बढ़ी है उस तेज़ी से उत्पादन नहीं बढ़ा जिसके कारण बड़ी संख्या में लोग तेल रेस्तरां के गटर से निकालकर उसे अनगढ़ तरीके से परिष्कृत कर दुबारा इस्तेमाल करते हैं, चीन में कुछ लोग इस धंधे से मालामाल तक हो गए, ये लोग न सिर्फ़ रेस्तरां के पास के गटर से तेल इकट्ठा करते हैं बल्कि शहर के हर उस इलाके के गटर से तेल इकट्ठा करते हैं जिन इलाकों में ढेर सारे रेस्तरां मौजूद हैं। इसे ये लोग अपनी कच्ची फैक्टरियों में ले जाकर उस गंदे तेल को गर्म करते हैं कई बार इसे कुछ दूसरे तरीकों से साफ़ करते हैं और डब्बों में भरकर छोटे रेस्तरां, ठेले पर सामान बेचने वालों को बेच देते हैं। इस तरह के तेल को लगातार खाने से लिवर, किडनी, आमाशय और आंतों का कैंसर होने का ख़तरा बढ़ जाता है।
वुहान के फूड साइंस एंड इंजीनियरिंग एंड टेक्नलॉजी इंस्टीट्यूट के एक वैज्ञानिक के अनुसार हर वर्ष चीन में 20 – 30 लाख टन गटर से निकाला हुआ तेल दुबारा रेस्तरां में खाने की टेबल पर पहुंचता है। चीन में पिछले कुछ वर्षों में वनस्पति और जानवरों की चर्बी से बने तेल की खपत करीब 2 करोड़ 25 लाख टन है, चीन में करीब 15% रेस्तरां गटर से निकाले गए तेल में खाना बनाते हैं। यानी चीन में अगर कोई व्यक्ति 10 बार बाहर खाना खा रहा है तो उसे कम से कम एक बार खाने में गटर वाला तेल खाने को मिलेगा। गटर से निकाले गए तेल को रेस्तरां की रसोईं वाले गटर से निकाला जाता है जिसमें भारी मात्रा में सीसा और दूसरे धातु के अंश, पेस्टीसाइट्स और पैथोजेन वाले बैक्टीरिया पाए जाते हैं जिसे चीन के छोटे और अवैध तेल शोधक कारखाने निकाल नहीं पाते और अंतत: ये खाने वाले के पेट में चले जाते हैं। ऐसा तेल खाने से शरीर में कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी होने की आशंका बहुत बढ़ जात है।
चीन में गटर तेल के बारे में लोगों को जानकारी देना बहुत खतरनाक काम है इसमें लोगों की जान भी चली जाती है। वर्ष 2012 के 9 अप्रैल को त्सो फू नाम के एक मशहूर टीवी न्यूज़ एंकर ने अपने सीना वेईबो अकाउंट पर एक संदेश में लिखा आप लोग पुरानी दही, जेली न खाया करें, खासकर बच्चे नहीं तो आपकी सेहत पर इसका गंभीर असर होगा, मैं इससे ज्यादा और कुछ नहीं लिख सकता। इस संदेश को बहुत कम समय में 1लाख 30 हज़ार लोगों ने देखा, इसके कुछ ही समय बाद त्सू वनछ्यांग नाम के इकॉनामिक ऑब्ज़र्वर अखबार के एक खोजी पत्रकार ने अपने सीना वेईबो अकाउंट पर लिखा कि एक दिन आपके द्वारा फेंके गए चमड़े के जूते पलक झपकते ही आपके पेट में चले जाएंगे। लेकिन ऐसी पोस्ट लिखने के कुछ ही समय बाद इन्होंने अपनी पोस्ट को डिलीट कर दिया, त्सो फ़ू को उस राष्ट्रीय टीवी न्यूज़ चैनल से हटा दिया गया जहां पर वो काम करता था, चार महीने बाद वो एक दूसरे टीवी चैनल पर दिखाई देने लगा लेकिन तीन वर्ष बाद उसे वहां से भी इस्तीफ़ा देना पड़ा। वर्ष 2010 में चीन की राष्ट्रीय परिषद ने एक आदेश जारी कर इस्तेमाल किये गए तेल और रेस्तरां की रसोईंघर से निकले कूड़े के प्रबंधन के लिये कानून बनाए लेकिन ये कानून सिर्फ़ कागज़ों पर ही सिमट कर रह गए, इस आदेश के लागू होने के एक दशक बाद भी चीन में तेल की समस्या जस की तस है, आज भी वहां पर धड़ल्ले से रेस्तरां में गटर वाला तेल इस्तेमाल किया जा रहा है, जिसे रोकने में चीन की सरकार पूरी तरह असमर्थ दिखाई देती है।
चीन में विविध प्रकार के व्यंजन बनते हैं, खाने पीने में हर प्रांत की अपनी विशेषता और अपना व्यंजन है जिसे चीनी लोग बड़े चाव के साथ खाते हैं। एक तरफ़ उत्तरी और सुदूर उत्तरी चीन के व्यंजन हैं जिसमें तेल मसाले कम डाले जाते हैं और वो खाना उबला हुआ होता है तो वहीं दक्षिणी और तटीय चीन के व्यंजनों में मसाले भी बहुत पड़ते हैं और तेल भी बहुत मात्रा में डाला जाता है।
चीनी व्यंजनों में तले भुने खाने का अपना महत्व है। पिछले 3 दशकों में चीन में जैसे जैसे आर्थिक तरक्की आई है चीनियों के व्यंजनों में तेल की मात्रा भी बढ़ी है, अगर हम बात करें कि चीन में लोग खाने में कौन सा तेल सबसे ज्यादा पसंद करते हैं तो इसका जवाब है कि अलग अलग प्रांतों में अलग अलग तेल का इस्तेमाल खाने में किया जाता है। पूर्वोत्तर चीन के चीलिन, हेइलोंगचियांग और लियाओनिंग प्रांत में सोयाबीन का तेल बहुतायत में खाया जाता है, सुदूर दक्षिण के क्वांगतुंग, फ़ूइचांग और क्वांगशी च्यांग स्वायत्त प्रांत में मूंगफली का तेल खाया जाता है और बाकी चीन के च्यांगसू, चच्यांग, आनहुई, च्यांगशी, हूनान, सछ्वान, कुईचो, युन्नान, शानसी, कानसू, छिंगहाई और शिनच्यांग प्रांतो में कोनोला तेल खाया जाता है। चीन में जैसे जैसे शहरीकरण बढ़ता गया वैसे ही चीन में हर तरह का तेल खाने का प्रचलन भी बढ़ा, इन तेलों में राइस बार्न तेल, सूरजमुखी के बीज का तेल भी प्रमुखता से इस्तेमाल किया जाता है।
चीन में तेल की मांग बढ़ने के साथ साथ हर तरह का तेल बाज़ार में उपलब्ध है, इस समय चीन में 44% लोग सोयाबीन का तेल खाते हैं, 24% लोग कोनोला तेल, 18% लोग पाम तेल, और 9% लोग मूंगफली का तेल खाते हैं इसके अलावा बचे 5% लोग कपास के बीज का तेल, सूरजमुखी का तेल, तिल का तेल, कैमेलिया का तेल और जैतून का तेल इस्तेमाल करते हैं। समय के साथ इन तेलों का इस्तेमाल करने वाले लोगों की संख्या में बदलाव आने लगा।
चीन में तीन दशक पहले हालात ऐसे नहीं थे, ग्रामीण लोग या तो सुअर की चर्बी पिघलाकर तेल के रूप में इस्तेमाल करते थे या फिर कोनोला के बीजों को अपरिष्कृत तरीके से कूटकर निकाला गया तेल इस्तेमाल करते थे। लेकिन पिछले तीन दशकों में चीन में तेल की मांग जिस तेज़ी से बढ़ी है उस तेज़ी से उत्पादन नहीं बढ़ा जिसके कारण बड़ी संख्या में लोग तेल रेस्तरां के गटर से निकालकर उसे अनगढ़ तरीके से परिष्कृत कर दुबारा इस्तेमाल करते हैं, चीन में कुछ लोग इस धंधे से मालामाल तक हो गए, ये लोग न सिर्फ़ रेस्तरां के पास के गटर से तेल इकट्ठा करते हैं बल्कि शहर के हर उस इलाके के गटर से तेल इकट्ठा करते हैं जिन इलाकों में ढेर सारे रेस्तरां मौजूद हैं। इसे ये लोग अपनी कच्ची फैक्टरियों में ले जाकर उस गंदे तेल को गर्म करते हैं कई बार इसे कुछ दूसरे तरीकों से साफ़ करते हैं और डब्बों में भरकर छोटे रेस्तरां, ठेले पर सामान बेचने वालों को बेच देते हैं। इस तरह के तेल को लगातार खाने से लिवर, किडनी, आमाशय और आंतों का कैंसर होने का ख़तरा बढ़ जाता है।
वुहान के फूड साइंस एंड इंजीनियरिंग एंड टेक्नलॉजी इंस्टीट्यूट के एक वैज्ञानिक के अनुसार हर वर्ष चीन में 20 – 30 लाख टन गटर से निकाला हुआ तेल दुबारा रेस्तरां में खाने की टेबल पर पहुंचता है। चीन में पिछले कुछ वर्षों में वनस्पति और जानवरों की चर्बी से बने तेल की खपत करीब 2 करोड़ 25 लाख टन है, चीन में करीब 15% रेस्तरां गटर से निकाले गए तेल में खाना बनाते हैं। यानी चीन में अगर कोई व्यक्ति 10 बार बाहर खाना खा रहा है तो उसे कम से कम एक बार खाने में गटर वाला तेल खाने को मिलेगा। गटर से निकाले गए तेल को रेस्तरां की रसोईं वाले गटर से निकाला जाता है जिसमें भारी मात्रा में सीसा और दूसरे धातु के अंश, पेस्टीसाइट्स और पैथोजेन वाले बैक्टीरिया पाए जाते हैं जिसे चीन के छोटे और अवैध तेल शोधक कारखाने निकाल नहीं पाते और अंतत: ये खाने वाले के पेट में चले जाते हैं। ऐसा तेल खाने से शरीर में कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी होने की आशंका बहुत बढ़ जात है।
चीन में गटर तेल के बारे में लोगों को जानकारी देना बहुत खतरनाक काम है इसमें लोगों की जान भी चली जाती है। वर्ष 2012 के 9 अप्रैल को त्सो फू नाम के एक मशहूर टीवी न्यूज़ एंकर ने अपने सीना वेईबो अकाउंट पर एक संदेश में लिखा आप लोग पुरानी दही, जेली न खाया करें, खासकर बच्चे नहीं तो आपकी सेहत पर इसका गंभीर असर होगा, मैं इससे ज्यादा और कुछ नहीं लिख सकता। इस संदेश को बहुत कम समय में 1लाख 30 हज़ार लोगों ने देखा, इसके कुछ ही समय बाद त्सू वनछ्यांग नाम के इकॉनामिक ऑब्ज़र्वर अखबार के एक खोजी पत्रकार ने अपने सीना वेईबो अकाउंट पर लिखा कि एक दिन आपके द्वारा फेंके गए चमड़े के जूते पलक झपकते ही आपके पेट में चले जाएंगे। लेकिन ऐसी पोस्ट लिखने के कुछ ही समय बाद इन्होंने अपनी पोस्ट को डिलीट कर दिया, त्सो फ़ू को उस राष्ट्रीय टीवी न्यूज़ चैनल से हटा दिया गया जहां पर वो काम करता था, चार महीने बाद वो एक दूसरे टीवी चैनल पर दिखाई देने लगा लेकिन तीन वर्ष बाद उसे वहां से भी इस्तीफ़ा देना पड़ा। वर्ष 2010 में चीन की राष्ट्रीय परिषद ने एक आदेश जारी कर इस्तेमाल किये गए तेल और रेस्तरां की रसोईंघर से निकले कूड़े के प्रबंधन के लिये कानून बनाए लेकिन ये कानून सिर्फ़ कागज़ों पर ही सिमट कर रह गए, इस आदेश के लागू होने के एक दशक बाद भी चीन में तेल की समस्या जस की तस है, आज भी वहां पर धड़ल्ले से रेस्तरां में गटर वाला तेल इस्तेमाल किया जा रहा है, जिसे रोकने में चीन की सरकार पूरी तरह असमर्थ दिखाई देती है।
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